“राज दरबारी”, पढ़िए छत्तीसगढ़ के राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारों की खोज परख खबर, व्यंग्यात्मक शैली में, लेखक और राष्ट्रीय जगत विजन के वरिष्ठ पत्रकार की कलम से…

राष्ट्रीय जगत विजन 19 फरवरी 2021
चोर का माल चंडाल खाए :
पुरानी कहावत है , चोर का माल चंडाल खाए और डकैत का माल जनता की तिजोरी में । रायपुर से पलायन कर दिल्ली पहुंचा एक डकैत इन दिनों साढ़े तीन करोड़ खर्च हो जाने का रोना रो रहा है । उसका कहना है कि पांच करोड़ के सौदे पर ना जाने किसकी नजर लग गई ? उसका बनता काम ठप्प हो गया । बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ के इस वर्दीधारी डकैत की रकम जन धन खाते में चली गई है । बहाली की बांट जोह रहा डकैत इससे भारी परेशान है , हालांकि डकैत के पास यह रकम खून-पसीने या मेहनत की कमाई नहीं बल्कि कारोबारियों को डरा धमका कर वसूली गई थी । लोगों की दलील है कि क्या बुरा हुआ ,जनता का धन जन धन में चला गया | बताया जाता है कि अपनी बहाली को लेकर डकैत ने दिल्ली के राजनैतिक गलियारों से लेकर प्रशासनिक हलकों तक खूब समीकरण बनाए थे । उसने सीबीआई के वरिष्ठ अफसरों से नजदीकियों का हवाला देकर अपना काम साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । उसका दावा है कि सरकार और उसके अफसर उसके आका की जेब में है | “हम सब एक है का नारा” देकर अपनी बहाली में जुटे डकैत ने आयकर और ईडी के अफसरों से भी अपनी नजदीकियां जाहिर करते हुए दावा किया कि वो जब चाहे तब आयकर-ईडी के मामलों को रफा-दफा करवा सकता है । अपनी पर आ जाए तो किसी के भी घर रेड पड़वा सकता है । सीबीआई के कई अफसरों का भी नाम लेकर लोगों के बीच रौब झाड़ने में डकैत पीछे नहीं है । उसके मुताबिक सीबीआई के कई अफसर उसके अधीनस्त काम कर चुके है । उनके जरिये वो सीबीआई की जांच भी प्रभावित करवा सकता है । बोल वचन के मामले माहिर इस डकैत को करीब से जानने वाले मानते है कि आपराधिक गतिविधियों में पारंगत यह शख्स रंग बदलने में गिरगिट से भी ज्यादा माहिर है । आपराधिक गतिविधियों के मामलों में चर्चित इस डकैत ने राज्य के पहले और दूसरे मुख्यमंत्री के दरबार में ऐसा रायता फैलाया था कि उसका दंश लोगों को आज भी भुलाए नहीं भूलता । अब डकैत तीसरे मुख्यमंत्री के दरबार में हाजरी बजाने के लिए महीला अधिकारी व प्रमोटी आई ए एस के जरिए अपना ,हाथ-पांव मार रहा है । हैट्रिक बनाने के चक्कर में तीसरे मुख्यमंत्री को साधने में जुटे इस डकैत ने अपने खर्चो का नया दांव खेला है । नए नए नुस्खे को आजमा रहे इस डकैत को कितनी कामयाबी मिलती है , यह तो समय ही बताएगा की कामयाबी मिलती है की नहीं।
अलर्ट पर छत्तीसगढ़ : आयकर-ईडी के छापो की खबर से गरमाया राजनीतिक व प्रशासनिक गलियारा
रायपुर समेत तीन बड़े शहरों में आयकर-ईडी के संभावित छापो को लेकर अलर्ट देखा जा रहा है । बैतूल के एक विधायक के ठिकानों में पड़े छापे के पहले ही यहां अलर्ट जारी हो गया था । एयरपोर्ट , रेलवे स्टेशन से लेकर राज्य की सरहद तक में हलचल देखी जा रही है । यहां सादी वेशभूषा में कई जवान कुछ खास लोगों पर नजर रख रहे है । उन्हें अंदेशा है कि इन्ही इलाकों से आयकर-ईडी की चहल कदमी कर सनसनी फैला सकती है । वो कुछ खास ठिकानों का रुख भी कर सकती है । संभावित छापो के ख़तरों के मद्देनजर कई बड़े कारोबारी भी सतर्क हो गए है । राजनैतिक गलियारा भी दहशत में है । उधर खबर आ रही है कि कई बड़े अफसर भले ही रिटायर क्यों न हो गए हो , उन पर भी आयकर-ईडी की नजर टिकी हुई है । बम कब और कहां फूटेगा , यह रहस्यमय बना हुआ है । हालांकि ख़ुफ़िया एजेंसियों की बेचैनी बता रही है कि फिर नई आफत दरवाजे पर खड़ी है ।
मोहन प्यारे – कुर्सी के राज दुलारे :
छत्तीसगढ़ में एक बार फिर आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग को हवा दे कर आग को भीतर ही भीतर सुलगा दिया गया है । बताया जाता है कि कांग्रेस की बागडोर थामने वालों में से एक नेता जी को मुख्यमंत्री बनाने का सपना दिखा कर उनके नजरों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टकटकी लगा दिया गया है । कही पर निगाहें और कही पर निशाना साधने में जुटे नेता जी के चर्चे दिल्ली दरबार में भी सुनाई पड़ने लगे है । दरअसल नेता जी ने बस्तर से लेकर सरगुजा तक आदिवासियों को एकजुट करना शुरू कर दिया है । सामाजिक नेताओं और पार्टी के विधायकों के बीच अपनी पैठ रवा करने में जुटे नेताजी के दौरों से आदिवासियों के बीच नए नेतृत्व का समीकरण उभर रहा है । उनके लगातार दौरों से आदिवासीों के बीच आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग भी जोर पकड़ने लगी है । आदिवासी समुदाय के नेता दलील दे रहे है कि इस राज्य का निर्माण ही आदिवासियों के विकास और कल्याण के लिए हुआ था । लेकिन कब्जा गैर आदिवासियों का हो गया । उनकी यह भी दलील है कि आदिवासी भावनाओं का सम्मान करते हुए कांग्रेस ने सबसे पहले आदिवासी मुख्यमंत्री को दिल्ली से रायपुर भेजा था । ये और बात है कि बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री की जाति को लेकर विवाद छिड़ गया । बीजेपी शासनकाल में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग भले ही दरकिनार कर दी गई थी । लेकिन कांग्रेस राज में अब आदिवासी कार्ड को कुछ लोगों के द्वारा सोची समझी रणनीति के तहत हिलोरे मरवाने में लग गए है | बस्तर में तो तमाम आदिवासी नेता और विधायक मोहन प्यारे – राज दुलारे का नारा भी बुलंद करने लगे है । उनके इस नारे से मौजूदा मुख्यमंत्री हैरान परेशान हो या ना हो क्यों की वे तो अपना ढाई साल का कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं , लेकिन कहते हैं ,राजा साहब की नींद उडी हुई है । दरअसल सीएम इन वेटिंग के रूप में राजा साहब अपनी ढाई साल की पारी का बेसब्री से इंतजार कर रहे है ? ऐसे में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग को हवा देकर नए ट्रंप कार्ड के रूप में नजर आते देख उनके अरमानों पर भी पानी फिरता दिखाई देने लगा है यह हवा देने वालों का मानना है। उधर ज्यादातर कांग्रेसियों की दलील है कि मौजूदा मुख्यमंत्री अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। वो अपने कामकाज के चलते ख्याति अर्जित कर रहे है । विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब भी मिल रहा है । लिहाजा नेतृत्व परिवर्तन की जोर आजमाइश सिर्फ ख़याली पुलाव है । ये और बात है कि कांग्रेस राज में “होई है वही जो सोनिया दाई / राहुल रची राखा” । कहा तो यह भी जा रहा है ,अगर 5 मार्च को सुप्रीम कोर्ट फर्जी सेक्स सीडी कांड की बाहर सुनवाई वाले मामले को छत्तीसगढ़ से अन्यत्र ट्रांसफर करने का आदेश जारी कर देता है ,तो भी वर्तमान मुख्यमंत्री को भी उमाभारती की तरह स्तीफा देना पड़ सकता है ।अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
अकबर-बीरबल की निगाहें अब जोगी बंगला और रायपुर सेंट्रल जेल पर , मिटेगा इनका अस्तित्व ?
शांति नगर रिडेवलपमेंट योजना के तहत सरकारी जमीन की बंदरबांट का सिलसिला अभी थमा नहीं कि अकबर बीरबल की निगाहें अब नए प्रोजेक्ट पर आ टिकी है । रायपुर के सिविल लाइन स्थित जोगी बंगला और सेंट्रल जेल परिसर की बेशकीमती जमीन पर अकबर बीरबल ने अपनी निगाहें गड़ा दी है । बताया जाता है कि सेंट्रल जेल की ऐतिहासिक इमारत को जमींदरोज कर यहां कांक्रीट का जंगल बसाने को लेकर माथापच्ची शुरू हो गई है । यही हाल जोगी बंगले का भी करने का संकल्प लिया गया है । सागौन बंगले के नाम से विख्यात जोगी बंगला परिसर की करीब छह एकड़ से ज्यादा जमीन पर सागौन समेत विभिन्न प्रजातियों के वृक्ष लगे है | पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को आवंटित इस बंगले में फ़िलहाल अमित जोगी और विधायक रेणु जोगी निवासरत है ।अंग्रेजी शासनकाल में निर्मित यह बंगला भी ऐतिहासिक है । जबकि रायपुर सेंट्रल जेल का भी स्वर्णिम इतिहास है । यहां प्रदेश के कई नामी गिरामी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को अंग्रेजों ने बंदी बनाकर यातनाएं दी थी । अंगेजी हुकूमत की चूले हिला देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने कई वर्ष इस जेल में गुजारे थे । उनकी यातनाओं और जीवन संघर्ष की झलक आज भी इस परिसर में बतौर यादगार दर्ज है । भले ही ऐतिहासिक इमारतों का ताल्लुख प्रदेश की धरोहर से हो सकता है । लेकिन अकबर-बीरबल को इससे क्या लेना-देना , उनका पूरा ध्यान तो रंग बिरंगी कागजी मुद्रा में दर्ज गांधीजी से है। रायपुर सेंट्रल जेल के अस्तित्व मिटाने पर तूले काले अंग्रेजों के मंसूबो को देखकर लगने लगा है कि मुगलकालीन गुंडाराज की स्थापना हो गई है । प्रदेश की प्रबुद्ध जनता के लिए इससे दुर्भाग्यपूर्ण फैसला और क्या हो सकता है ? रायपुर शहर की हरियाली नष्ट कर कांक्रीट का जंगल खड़ा किए जाने के हैरत अंगेज फैसलों की घडी करीब आ रही है । विपक्ष मूकदर्शक बना हुआ है , जबकि कायदे-कानूनों को संरक्षण देने वाली सरकारी संस्थाएं रंग बदलते हुक्मरानों के हाथों की कठपुतली बन गई है ।
सेंट्रल जेल में हाऊसिंग बोर्ड के घोटालों की डायरी का विमोचन कैदियों के हाथों :
अकबर-बीरबल के किस्से आम जनता के बीच ही मशहूर नहीं है , बल्कि रायपुर सेंट्रल जेल में भी उनकी गूंज सुनाई दे रही है । कैदी हैरानी जता रहे है कि मामूली अपराधों में वे जेल की हवा खा रहे है । जबकि सरकारी तिजोरी में करोड़ों की रकम पर हाथ साफ़ करने वालों की बल्ले बल्ले है । सामान्य अपराधों में वे जेल में कैद होकर रह गए है । वही दूसरी ओर करोड़ों की रकम डकारने वाले अकबर-बीरबल जनता के नुमाइंदे बने हुए है । कैदियों को जब पता पड़ा कि हाऊसिंग बोर्ड में अरबों के भ्रष्टाचार के बावजूद कोई जांच तक नहीं हुई , तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । ये कैदी अपने अपराधों की तुलना अकबर-बीरबल और उसकी टोली के कारनामों से करने लगे है । उन्हें महसूस हो रहा है कि वे छोटे-मोटे अपराधो में धर लिए गए है । जबकि अकबर-बीरबल खुलेआम चूना लगा रहे है ।दरअसल इन दिनों छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड के पीआरओ राजेश नायर अपनी जमानत रद्द होने के चलते जेल में कैद है । विचाराधीन कैदियों के बीच उनका वक्त गुजर रहा है । इस दौरान वो एक डायरी लिख रहे है । इस डायरी में छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड के घोटालों की दास्तान भी दर्ज की जा रही है । वे बता रहे है कि आखिर कैसे तमाम प्रोजेक्ट को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ाकर चंद अफसरों ने अपनी आय का जरिया बना लिया । यही नहीं अकबर-बीरबल और उनके अजगर ने सरकारी तिजोरी में सेंधमारी के लिए आखिर कैसे सरकारी जमीनों की बंदरबांट के प्रोजेक्ट तैयार किये ? इसका ब्यौरा भी इस डायरी में उल्लेखित किया गया है ।बताया जाता है कि राजेश नायर ने इस डायरी में तमाम क़ानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए भ्रष्ट अफसरों की काली कमाई पर से पर्दा हटाया है । उनकी माने तो जेल में कैद गंभीर किस्म के अपराधों में लिप्त कैदियों के हाथों से वे इस डायरी का विमोचन करवाएंगे । फ़िलहाल अकबर-बीरबल के घोटालों से वाकिफ होकर कैदियों के मन में नेता-अफसर बनने की ललक पैदा हो रही है ।