April 25, 2024

बड़ा सवाल: जब सुप्रीम कोर्ट ने माना हैं देह व्यापार को वैध पेशा तो पत्रकारिता की आड़ में वैश्यावृत्ति क्यों?

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बड़ा सवाल: जब सुप्रीम कोर्ट ने माना हैं देह व्यापार को वैध पेशा तो पत्रकारिता की आड़ में वैश्यावृत्ति क्यों? …….. पत्रकारिता की आड़ में देह व्यापार में संलिप्त पत्रकार को पुलिस ने किया गिरफ्तार,पत्रकारिता की आड़ में देह व्यापार,सेक्स रैकेट की सरगना निकली बरखा

नई दिल्ली :-वस्तुतः पत्रकारिता ही वह माध्यम है जिसके अन्तर्गत हम विश्व जीवन से संयुक्त होते हैं। आज के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व्यस्तता प्रधान जीवन में समाचार-पत्र के साथ वेबपोर्टल न्यूज़ व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। जिस तरह शारीरिक भूख शांत करने के लिए भोजन जरूरी है, उसी तरह मानसिक तृप्ति के लिए पत्र-पत्रिकाएं जीवन के लिए अनिवार्य बन चुकी हैं।“पत्रकारिता वास्तव में एक चुनौती है जिसके आवश्यक गुण हैं-उत्तरदायित्व,अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना,सभी दबावों से परे रहना,सत्य प्रकट करना, निष्पक्षता,समान और सभ्य व्यवहार।”हालांकि पत्रकारिता ने अपने स्वरूप और अपने चरित्र में बुनियादी परिवर्तन किये। खबरों की स्थूलता की जगह उसके तह में छिपी सच्चाई को खोज निकालने की प्रवृत्ति विकसित हुई और पत्रकारिता ने आमजन के दर्द को आवाज देने का काम ही हाथ में नहीं लिया, उसके कारणों को तलाशने एवं उस पर निर्भीकता के साथ भरपूर हमला करने की ओर भी प्रवृत्त हुई। आठवें दशक के पूर्वार्द्ध तक किसी राष्ट्रनायक भाषण को आँख मूदकर अखबार की सुर्खियां बनाने वाले समाचार पत्रों ने ऐसी खबरों को प्रमुखता देनी शुरू की जिनका सीधा सम्बन्ध पाठक वर्ग से होता है। असीमित ऊर्जा और आकाशी चेतना ने उसे दिग्विजयी आत्मशक्ति दी उसकी बदौलत वह न केवल तंत्र के सामने तनकर खड़ी हुई वरन ‘लोक’ के लिए सुरक्षा-कवच भी बन गयी। पत्रकारिता ने जहाँ एक ओर सत्ता के घिनौने खेल को निर्भीकता के साथ बेनकाब करना शुरू किया वहीं जर्जर,पाखण्डों, मान्यताओं,आडम्बरों पर भी प्रहार किया।जातिवाद,भाषावाद, सम्प्रदायवाद,धर्मान्धता, क्षेत्रवाद,जैसी संकीर्ण प्रवृत्तियों के उत्स खोजे और उन तत्वों को शक्ति दी जिनसे देश की पहचान बनती थी। व्यक्ति को उसकी गरिमा और अस्मिता का बोध कराया तथा सांस्कृतिक-सामाजिक चेतना के तारों को लय दिया। कर्तव्य बोध ने हिन्दी पत्रकारिता को गवेषणात्मक बनाया और वह जलते सवालों पर मुखर बहस का सार्थक मंच बनी मानवीय जीवन के चाहे जिस पहलू से जुड़े हों। कभी-कभी तो वह खुलकर एक पक्ष के रूप में आती हुई दिखाई देती है। तटस्थता की पुरानी अवधारणा अन्तिम सांसें ले रही हैं। खबरों और विशेष रपटों पर कभी-कभी तो सम्पादक की अपनी दृष्टि इतनी अधिक हावी दिखती है कि सही तथ्य तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। यह लक्षण शुभ है या अशुभ इस विवाद में पड़े बिना इतना तो कहा जा सकता है कि जनसाधारण के प्रति पत्रकारिता की प्रतिबद्धता बढ़ी है। कथ्य की प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए शिल्पगत प्रयोग हुए हैं।पत्रकारिता के प्रकार की बात की जाय तो खोज पत्रकारिता,ग्रामीण पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता,फिल्म पत्रकारिता,उद्योग पत्रकारिता, बाल पत्रकारिता,दूरदर्शन पत्रकारिताा,रेडियो पत्रकारिता, विज्ञान पत्रकारिता,पीत पत्रकारिता।खोज पत्रकारिता को समाचार पत्र ने उद्योग की आपसी प्रतिस्पर्धा ने खोज पत्रकारिता को भरपूर बढ़ावा दिया हैं। प्रतिद्वन्द्वी अखबारों से अलहदा कुछ नयी और सनसनीखेज खबर पाठकों तक पहुंचाकर अखबार को लोकप्रिय बनाने की मंशा के चलते खोज-खेबरों की बहार सी आ गयी है। हालत यह है कि संवाददाता से लेकर सम्पादक तक की प्रतिभा, योग्यता और कुशलता का मापदण्ड ही बन गयी हैं खोज-खबरें। संवाददाता की कार्यकुशलता इस बात से आंकी जाने लगी है कि वह कितनी ‘एक्सक्लूसिव स्टोरी’ ले आता है और अखबार तथा सम्पादक की प्रतिष्ठा इस बात से बनती है कि कितनी खोज-खबरें छपती हैं। समाचार पत्र हो या पत्रिकाएं, उनमें एकरसता आने का मतलब होता है कि अकाल मौत। एकरसता नीरसता को जन्म देती है और नीरसता पाठक-वर्ग का दायरा क्रमशः छोटा करती जाती है। इसलिए एक सम्पादक की कारयित्री प्रतिभा और कल्पनाशक्ति की परीक्षा सम्बद्ध पत्र-पत्रिकाओं की जीवन्तता से ही होती है, जिसे बनाये रखने में साज-सज्जा कम, पठनीय सामग्री का अधिक योगदान होता है और पठनीय सामग्री में रोचकता एवं आकर्षण पैदा करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है खोज खबरों की।
पत्रकार चाहे फील्ड में हो चाहे टेबुल पर, कुछ नया करने की आकांक्षा उसके अन्दर घुमड़ती रहती है। खबरों के पीछे छिपी खबरों की तलाश और खबरों के बीच से खबरें निकाल लेने की ललक उसके अन्दर होती है। वह अपनी कल्पना शक्ति, विश्लेषण क्षमता तथा सूक्ष्म दृष्टि की सहायता से खबरें खोजता और गढ़ता है। अनुसंधान और निर्माण की यह प्रक्रिया जटिल चाहे जितनी हो, जो कुछ नया बनता है उसकी विश्वसनीयता रत्ती भर भी कम नहीं होती। तथ्य अपने मूल रूप में तो ज्यों के त्यों होते हैं, उनसे जुड़े सवालों को अलबत्ता उकेरने की कोशिश की जाती है। परत-दर-परत उघाड़कर समाचारों के तह तक पहुंचना और उसके असली चेहरों को पहचानना पत्रकार का लक्ष्य होता है। खोज-खबरों में तथ्य-संकलन ही नहीं होता उसका विश्लेषण भी होता है और कभी-कभी भविष्य की ओर सटीक संकेत भी। खोज खबरें राजनीतिक भी हो सकती हैं, सामाजिक भी और विभिन्न स्तरों के भ्रष्टाचार सम्बन्धी भी। राजनीति और समाज से सम्बन्धित खोज-खबरों के लिए कुछ अधिक कल्पनाशीलता तथा विश्लेषण क्षमता की आवश्यकता होती है। बिखरे सूत्रों तथा संकेतों में तारतम्य स्थापित कर एक आधार तैयार करने और उस पर एक आकार खड़ा करने का कार्य काफी मुश्किल होता है। थोड़ी सी चूक से यह पूरा आकार बालू की भीत साबित हो सकता है और पत्रकार को लेने के देने पड़ सकते हैं। इसके विपरीत अपराध एवं भ्रष्टाचार सम्बन्धी खोज-खबरों में दस्तावेजी प्रमाणों की गुंजाइश अपेक्षाकृत अधिक होती है इसलिए इनकी सत्यता को चुनौती भी कम मिलती है और पत्रकार अपने आपको नैतिक रूप से सुरक्षित महसूस करता है। राजनीति से सम्बन्धित खोज- खबरों में दस्तावेजी प्रमाणों का अभाव रहता है। इसलिए पत्रकार को सिर्फ हवा में तैरते कुछ बहुरंगी सूत्रों को पकड़कर उन्हें एक रंग में ढालने और फिर तराश कर एक विश्वसनीय आकार देने का अनगढ़ कार्य करना पड़ता है- इस संभावना के साथ कि जिन सूत्रों को उसने अपनी पैनी दृष्टि से देखा है, पकड़कर सहेजने का साहस किया है वे फिर अपना रंग न बदल दें?लेकिन आज की इस दौड़भाग भरी जिंदगी और कम समय मे अधिक पैसे कमाने की लालसा के चलते इंसान अपना शरीर के साथ अपना जमीर बेचने आतुर हो चुका हैं।जो कि अब पत्रिकारिता जैसे पवित्र पेशे को भी कलंकित करने उतारू हो चुके हैं इनका ईमान धर्म सिर्फ पैसा और सिर्फ पैसा हो गया हैं।

पकड़ा गया देह व्यापार में लिप्त पत्रकार

भारत के कुछ राज्यों के कुछ क्षेत्रों में आज भी देहव्यापार भले ही एक छोटी आबादी के लिए रोजी रोटी का जरिया बना हुआ है लेकिन पिछले कुछ महिनों में जिस देहव्यापार के हाईप्रोफाइल मामले सामने आए हैं उससे यह बात तो साफ हो गई है कि देहव्यापार अब केवल मजबूरी न होकर धनवान बनने का एक हाईप्रोफाइल धंधा बन गया है। नेता,अभिनेता और धर्माचार्य भी इस धंधे को चला रहे हैं।
देहव्यापार दुनिया के पुराने धंधों में से एक है। बेबीलोन के मंदिरों से लेकर भारत के मंदिरों में देवदासी प्रथा वेश्यावृत्ति का आदिम रूप है। गुलाम व्यवस्था में उनके मालिक वेश्याएं पालते थे। अनेक गुलाम मालिकों ने वेश्यालय भी खोले। तब वेश्याएं संपदा और शक्ति की प्रतीक मानी जाती थीं। मुगलों के हरम में सैकड़ों औरतें रहती थीं। मुगलकाल के बाद, जब अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार किया तो इस धंधे का स्वरूप बदलने लगा। इस समय राजाओं ने अंग्रेजों को खुश करने के लिए तवायफों को तोहफे के रूप में पेश किया जाता था। आधुनिक पूंजीवादी समाज में वेश्यावृत्ति के फलने-फूलने की मुख्य वजह सामाजिक तौर पर स्त्री का वस्तुकरण है। यह तो पूराने दौर की कहानी है, जहां आपको मजबूरी दिखती होगी।
पुराने वक्त के कोठों से निकल कर देह व्यापार का धंधा अब पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे के बीच तक पहुंच गया है। बहुत जल्दी ऊंची छलांग लगाने की मध्यमवर्गीय महत्वाकांक्षी लड़कियों की संख्या भी बढ़ रही है। अब पत्रकार की पहचान मुश्किल हो गई है। इनकी वेशभूषा, पहनावा व भाषा हाई प्रोफाइल है और उनका काम करने का ढंग पत्रकारिता की आड़ में पूरी तरह सुरक्षित है।बताना लाजमी होगा कि कुछ दिनों पूर्व एक सनसनीखेज मामले में अल्मोड़ा के एक मान्यता प्राप्त पत्रकार महेश राठौर को पुलिस ने देह व्यापार के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया हैं। पत्रकारिता को पवित्र व्यवसाय मानने वाले अल्मोड़ा के नागरिक इस घटना से भौंचक्के रह गये हैं। नगर के विभिन्न संगठनों ने जिलाधिकारी अक्षत गुप्ता को ज्ञापन दे कर कहा है कि इस मामले में किसी भी व्यक्ति को बख्शा न जाये, चाहे वह पत्रकार हो, नेता या फिर बड़ा नौकरशाह। अल्मोड़ा प्रेस क्लब ने अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिये इस घटना के बाद महेश राठौर को प्रेस क्लब से निकाल बाहर किया है। हालाँकि अतीत में राठौर एक पत्रकार यूनियन का पदाधिकारी भी रह चुका है।
राठौर के काले कारनामे तब उजागर हुए जब यह तथाकथित पत्रकार एक नाबालिग लड़की को देह व्यापार के लिये अल्मोड़ा से देहरादून भेज रहा था। अल्मोड़ा में नवी कक्षा में पढ़ने वाली इस छात्रा ने बताया कि यह धंधेबाज पत्रकार पिछले तीन वर्षों से उसका यौन शोषण कर रहा था। छात्रा के अनुसार 4 वर्ष पूर्व उसकी पहचान अल्मोड़ा में एक रेस्टोरेंट चलाने वाली कमला खंपा से हुई, जिसने उसे महेश राठौर से मिलवाया। यह पत्रकार उसे कचहरी बाजार स्थित फेमिना ब्यूटी पार्लर के मालिक वसीम के पास ले गया। इन लोगों ने कई बार उस छात्रा का शारीरिक शोषण किया। इसके बाद यह मीडियाकर्मी अपने लाभ के लिए इस नाबालिग लड़की को इधर-उधर भेजने लग गया था।
महेश राठौर नामक यह व्यक्ति कुछ वर्ष पूर्व तक अल्मोड़ा के कचहरी बाजार में फड़ लगाकर मसाले बेचता रहता था। फिर यह बरेली से निकलने वाले एक दैनिक समाचार पत्र का संवाददाता बन गया। पत्रकारिता की आड़ में इसके नेताओं व अफसरशाहों से घनिष्ठ सम्बन्ध बन गये, जिसके कारण यह निरन्तर सम्पन्नता की सीढि़याँ चढ़ता रहा। आजकल यह कांग्रेस से छोड़ कर भाजपा में आई एक बहुचर्चित नेत्री का विश्वासपात्र सिपहसालार बना था। यह स्पष्ट नहीं है कि इस राजनीतिक भूमिका में उसने देह व्यापार को हथियार बनाया था अथवा नहीं। नाबालिग किशोरी की शिकायत पर हल्द्वानी पुलिस ने अल्मोड़ा की रेस्टोरेंट संचालिका, कचहरी बाजार स्थित ब्यूटी पार्लर संचालक वसीम, पत्रकार महेश राठोर व टैक्सी चालक शावेज खान के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया है।हाल के दिनों में किसी पत्रकार के देह व्यापार में लिप्त होने की यह दूसरी घटना है। देहरादून के बहुचर्चित अपर सचिव (गृह) जे.पी. जोशी सैक्स स्कैंडल में भी पुलिस ने रितु कंडियाल के अतिरिक्त एक चैनल के पत्रकार को गिरफ्तार किया था। इन घटनाओं से साबित होता है कि देवभूमि उत्तराखंड सहित पूरे देश के किसी न किसी जगह पत्रकारिता की आड़ में अनैतिक काम कर पैसा कमाने वाले लोग भारी संख्या में पत्रकारिता में घुसपैठ कर चुके हैं।कई तो पहले सामाजिक बुराइयों में लिप्त थे जो अब किसी भी अखबार मालिक से 5 हजार से तीन हजार रुपए में अपना आईकार्ड बड़ी आसानी से बनवा लेते हैं और पत्रकार का तमगा पहनकर पत्रकार बन जाते हैं। जबकि पत्रकारिता एक एैसा व्यवसाय है जिसमें व्यक्ति को अधिकारियों और राजनीतिज्ञों के साथ मिलने-जुलने के अनेक मौके मिलते हैं। अनेक बार तो नौकरशाह और राजनेता भी चाहते हैं कि मीडिया में उनके बारे में सकारात्मक खबरें छपती रहें। ऐसे में फटाफट पैसा कमाने के लिये पत्रकारिता में आये इन लोगों की चल निकलती है।तो वंही दूसरी और अनैतिक कार्यो में और धंधे में जुड़ी विषधर कन्या भी इस पेशे में आकर रंगीन मिजाज अधिकारियों से संपर्क साधकर रातों रात लखपति बनजाती हैं।शासन की योजनाओं का लाभ भी इन विषधर कन्याओं को रंगीन मिजाज अधिकारियों द्वारा दिलाया जाता हैं।इन परिस्थितियों में ईमानदार पत्रकारों के लिये बहुत जरूरी है कि अपने बीच घुसे ऐसे लोगों को बेनकाब करें।

पत्रकारिता की आड़ में देह व्यापार, सैक्स रैकेट की सरगना बनी बरखा

कुछ समय पूर्व कानपुर की क्राइम ब्रांच के आईजी को किसी व्यक्ति ने फोन पर जो जानकारी दी थी, वह वाकई चौंका देने वाली थी,एकबारगी तो आईजी साहब को भी खबर पर विश्वास ही नहीं हुआ। पर इसे अनसुना करना भी उचित नहीं था।अत: उन्होंने उसी समय तत्कालीन क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को फोन कर के अपने कैंप कार्यालय पर आने को कहा।10 मिनट बाद क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला तत्कालीन आईजी आलोक कुमार सिंह के निवास पर पहुंच गए। आईजी ने ऋषिकांत की ओर मुखातिब हो कर कहा कि‘‘शुक्लाजी, फीलखाना क्षेत्र के पटकापुर में कालगर्ल का धंधा होने की जानकारी मिली है।और शर्मनाक बात यह है कि फीलखाना थाना व चौकी के कुछ पुलिसकर्मी ही कालगर्लों को संरक्षण दे रहे हैं। तुम जल्द से जल्द इस सूचना की जांच कर के दोषी पुलिसकर्मियों की जानकारी मुझे दो।इस बात का खयाल रखना कि यह खबर किसी भी तरह लीक न हो।
ऋषिकांत शुक्ला कानपुर के कई थानों में तैनात रह चुके थे।उन के पास मुखबिरों का अच्छाखासा नेटवर्क था।अत: आईजी का आदेश पाते ही उन्होंने फीलखाना क्षेत्र में मुखबिरों को अलर्ट कर दिया,2 दिन बाद ही 2 मुखबिर ऋषिकांत शुक्ला के ऑफिस पहुंचे,उन्होंने उन्हें बताया कि ‘‘सर, फीलखाना थाना क्षेत्र के पटकापुर में सूर्या अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर के एक फ्लैट में हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट चल रहा है। इस रैकेट की संचालिका बरखा मिश्रा है।वह पत्रकारिता की आड़ में यह धंधा करती है।उस ने बचाव के लिए वहां अपना एक औफिस भी खोल रखा है।उसे कथित मीडियाकर्मी, पुलिस तथा सफेदपोशों का संरक्षण प्राप्त है।क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने मुखबिर से मिली सूचना से आईजी आलोक कुमार सिंह को अवगत करा दिया।सूचना की पुष्टि हो जाने के बाद तत्कालीन आईजी ने एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को इस मामले में काररवाई करने के निर्देश दिए।चूंकि मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए मीणा ने एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या के नेतृत्व में एक टीम गठित की। इस टीम में उन्होंने सीओ कोतवाली अजय कुमार, सीओ सदर समीक्षा पांडेय, क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला, फीलखाना इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, एसआई विनोद मिश्रा, रावेंद्र कुमार, महिला थानाप्रभारी अर्चना गौतम तथा महिला सिपाही पूजा व सरिता सिंह को शामिल किया।3 जनवरी की शाम को यह टीम पटकापुर पुलिस चौकी के सामने स्थित सूर्या अपार्टमेंट पहुंची। कांस्टेबल पूजा ने इस अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली बरखा मिश्रा के फ्लैट का दरवाजा खटखटाया।चंद मिनट बाद एक खूबसूरत महिला ने दरवाजा खोला,सामने पुलिस टीम को देख कर वह बोली, ‘‘कहिए, आप लोगों का कैसे आना हुआ?’’

‘‘क्या आप का नाम बरखा मिश्रा है?’’ सीओ समीक्षा पांडेय ने पूछा।

‘‘जी हां, कहिए क्या बात है?’’ वह बोली।

‘‘मैडम, हमें पता चला है कि आप के फ्लैट में देह व्यापार चल रहा है’’ समीक्षा पांडेय ने कहा।

इस बात पर बरखा मिश्रा न डरी न सहमी बल्कि मुसकरा कर बोली, ‘‘आप जिस बरखा की तलाश में आई हैं, मैं वह नहीं हूं। मैं तो मीडियाकर्मी हूं। क्या आप ने मेरा बोर्ड नहीं देखा? पत्रकार के साथ-साथ मैं समाजसेविका भी हूं। मैं भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी की वाइस प्रेसीडेंट हूं’’ रौब से कहते हुए बरखा ने एक समाचारपत्र का प्रैस कार्ड व कमेटी का परिचय पत्र उन्हें दिखाया।बरखा मिश्रा ने पुलिस टीम पर अपना प्रभाव जमाने की पूरी कोशिश की, लेकिन पुलिस टीम उस के दबाव में नहीं आई,टीम बरखा मिश्रा को उस के फ्लैट के अंदर ले गई,वहां का नजारा कुछ और ही था।फ्लैट में 3 युवक, 3 युवतियों के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थे।जबकि एक युवक पैसे गिन रहा था।पुलिस को देख कर सभी भागने की कोशिश करने लगे।लेकिन पुलिस टीम ने उन्हें भागने का मौका नहीं दिया। सीओ सदर समीक्षा पांडेय ने महिला पुलिसकर्मियों के सहयोग से संचालिका सहित चारों युवतियों को कस्टडी में ले लिया, जबकि क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने चारों युवकों को अपनी कस्टडी में ले लिया।फ्लैट की तलाशी ली गई तो वहां से 72,500 रुपए नकद, शक्तिवर्धक दवाएं, कंडोम तथा अन्य आपत्तिजनक चीजें मिलीं,पुलिस ने इन सभी चीजों को अपने कब्जे में ले लिया।संचालिका बरखा मिश्रा के पास से प्रैस कार्ड, भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी का कार्ड, आधार कार्ड व पैन कार्ड मिले, जो 2 अलगअलग नामों से बनाए गए थे,सभी आरोपियों को हिरासत में ले कर पुलिस थाना फीलखाना लौट आई।

एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा और एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या भी थाना फीलखाना आ पहुंचे।पुलिस अधिकारियों के सामने अभियुक्तों से पूछताछ की गई तो एक युवती ने अपना नाम प्रिया निवासी शिवली रोड, थाना कल्याणपुर, कानपुर सिटी बताया।दूसरी युवती ने अपना नाम विनीता सक्सेना, निवासी आर्यनगर, थाना स्वरूपनगर तथा तीसरी युवती ने अपना नाम नेहा सेठी निवासी मकड़ीखेड़ा, कानपुर सिटी बताया,जबकि संचालिका बरखा मिश्रा ने अपना पता रतन सदन अपार्टमेंट, आजादनगर, कानपुर सिटी बताया।अय्याशी करते जो युवक गिरफ्तार हुए थे, उन के नाम शेखर गुप्ता, गौरव सिंह, नवजीत सिंह और दीपांकर गुप्ता थे. सभी कानपुर सिटी के ही अलगअलग इलाकों के रहने वाले थे।
पुलिस ने संचालिका बरखा मिश्रा व अन्य आरोपियों के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं,पता चला कि बरखा मिश्रा का पूरा नेटवर्क औनलाइन चल रहा था।उस ने कई वेबसाइटों पर युवतियों की फोटो व मोबाइल नंबर अपलोड कर रखे थे, जिन के जरिए ग्राहक संपर्क करते थे. इतना ही नहीं वाट्सऐप, फेसबुक के जरिए भी ग्राहकों को युवतियों की फोटो व मैसेज भेज कर संपर्क किया जाता था।
ग्राहकों की डिमांड पर वह दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, बनारस व मुंबई आदि शहरों के दलालों की मार्फत रशियन व नेपाली युवतियों को भी मंगाती थी, बरखा को कुछ मीडियाकर्मियों, पुलिस वालों, रसूखदार लोगों व प्रशासनिक अधिकारयों का संरक्षण प्राप्त था। समाजसेवा का लबादा ओढ़े कुछ सफेदपोश भी बरखा मिश्रा को संरक्षण दे रहे थे।ऐसे लोग खुद भी उस के यहां रंगरलियां मनाते थे।पूछताछ में पुलिस ने बरखा की पूरी जन्मकुंडली पता कर ली। साधारण परिवार में पली बरखा के कालेज टाइम में कई बौयफ्रैंड थे, जिन के साथ वह घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती थी।समय आने पर बरखा के मांबाप ने उस की शादी कर दी। मायके से विदा हो कर बरखा ससुराल पहुंच गई।ससुराल में बरखा कुछ समय तक तो शरमीली बन कर रही पर बाद में वह धीरेधीरे खुलने लगी।दरअसल, बरखा ने जैसे सजीले युवक से शादी का रंगीन सपना संजोया था, उसे वैसा पति नहीं मिला। उस का पति दुकानदार था और उस की आमदनी सीमित थी।वह न तो पति से खुश थी और न उस की आमदनी से उस की जरूरतें पूरी होती थीं, बरखा आए दिन उस से शिकायत करती रहती थी।फलस्वरूप आए दिन घर में कलह होने लगी।

पति चाहता था कि बरखा मर्यादा में रहे और देहरी न लांघे, लेकिन बरखा को बंधन मंजूर नहीं था।वह तो चंचल हिरणी की तरह विचरण करना चाहती थी, उसे घर का चूल्हाचौका करना या बंधन में रहना पसंद नहीं था। इन्हीं सब बातों को ले कर पति व बरखा के बीच झगड़ा बढ़ने लगा,आखिर एक दिन ऐसा भी आया कि आजिज आ कर बरखा ने पति का साथ छोड़ दिया।

पति का साथ छोड़ने के बाद वह कौशलपुरी में किराए पर रहने लगी।वह पढ़ीलिखी और खूबसूरत थी।उसे विश्वास था कि उसे जल्द ही कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी और उस का जीवन मजे से कटेगा।इसी दिशा में उस ने कदम बढ़ाया और नौकरी की तलाश में जुट गई।बरखा को यह पता नहीं था कि नौकरी इतनी आसानी से नहीं मिलती,वह जहां भी नौकरी के लिए जाती, वहां उसे नौकरी तो नहीं मिलती लेकिन उस के शरीर को पाने की चाहत जरूर दिखती।उस ने सोचा कि जब शरीर ही बेचना है तो नौकरी क्यों करे।लिहाजा उस ने पैसे के लिए अपना शरीर बेचना शुरू कर दिया,वह खूबसूरत भी थी और जवान भी, इसलिए उसे ग्राहक तलाशने में कोई ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पडी। यह काम करने में उसे शुरूशुरू में झिझक जरूर महसूस हुई लेकिन कुछ समय बाद वह देहधंधे की खिलाड़ी बन गई।आमदनी बढ़ाने के लिए उस ने अपने जाल में कई लड़कियों को भी फांस लिया था।

जब इस धंधे से उसे ज्यादा आमदनी होने लगी तो उस ने अपना कद और दायरा भी बढ़ा लिया।अब वह किराए पर फ्लैट ले कर धंधे को सुचारू रूप से चलाने लगी।वह नई उम्र की लड़कियों को सब्जबाग दिखा कर अपने जाल में फंसाती और देह व्यापार में उतार देती।उस के निशाने पर स्कूल कालेज की वे लड़कियां होती थीं, जो अभावों में जिंदगी गुजार रही होती थीं।बरखा खूबसूरत होने के साथसाथ मृदुभाषी भी थी।अपनी बातचीत से वह सामने वाले को जल्द प्रभावित कर लेती थी। इसी का फायदा उठा कर उस ने कई सामाजिक संस्थाओं के संचालकों, नेताओं, मीडियाकर्मियों, पुलिसकर्मियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों से मधुर संबंध बना लिए थे। इन्हीं की मदद से वह बड़े मंच साझा करने लगी थी।पुलिस थानों में पंचायत करने लगी। यही नहीं, उस ने एक मीडियाकर्मी को ब्लैकमेल कर के प्रैस कार्ड भी बनवा लिया और एक सामाजिक संस्था में अच्छा पद भी हासिल कर लिया

बरखा मिश्रा को देह व्यापार से कमाई हुई तो उस ने अपना दायरा और बढ़ा लिया,दिल्ली, मुंबई, आगरा व बनारस के कई दलालों से उस का संपर्क बन गया इन्हीं दलालों की मार्फत वह लड़कियों को शहर के बाहर भेजती थी तथा डिमांड पर विदेशी लड़कियों को शहर में बुलाती भी थी।कुछ ग्राहक रशियन व नेपाली बालाओं की डिमांड करते थे। उन से वह मुंहमांगी रकम लेती थी,ये लड़कियां हवाईजहाज से आती थीं और हफ्ता भर रुक कर वापस चली जाती थीं। बरखा के अड्डे पर 5 से 50 हजार रुपए तक में लड़की बुक होती थीं।होटल व खानेपीने का खर्च ग्राहक को ही देना होता था।बरखा इस धंधे में कोडवर्ड का भी प्रयोग करती थी। एजेंट को वह चार्ली के नाम से बुलाती थी और युवती को चिली नाम दिया गया था। किसी युवती को भेजने के लिए वह वाट्सऐप पर भी चार्ली टाइप करती थी। मैसेज में भी वह इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करती थी। चार्ली नाम के उस के दर्जनों एजेंट थे, जो युवतियों की सप्लाई करते थे। एजेंट से जब उसे लड़की मंगानी होती तो वह कहती, ‘‘हैलो चार्ली, चिली को पास करो।

लोगों को शक न हो इसलिए बरखा एक क्षेत्र में कुछ महीने ही धंधा करती थी।जैसे ही उस के बारे में सुगबुगाहट होने लगती तो वह क्षेत्र बदल देती थी।पहले वह गुमटी क्षेत्र में धंधा करती थी।फिर उस ने स्वरूपनगर में अपना काम जमाया,स्वरूपनगर स्थित रतन अपार्टमेंट में उस ने किराए पर फ्लैट लिया और सैक्स रैकेट चलाने लगी।

नवंबर में बरखा ने फीलखाना क्षेत्र के पटकापुर स्थित सूर्या अपार्टमेंट में ग्राउंड फ्लोर पर एक फ्लैट किराए पर लिया।यह फ्लैट किसी वकील का था।उस ने वकील से कहा कि वह पत्रकार है. उसे फ्लैट में अपना औफिस खोलना है। इस फ्लैट में वह धंधा करती थी, जबकि रहने के लिए उस ने आजादनगर के सदन अपार्टमेंट में फ्लैट किराए पर ले रखा था।दरअसल, एक मीडियाकर्मी ने ही बरखा को सुझाव दिया था कि वह समाचारपत्र का कार्यालय खोल ले।इस से पुलिस तथा फ्लैटों में रहने वाले लोग दबाव में रहेंगे।यह सुझाव उसे पसंद आया और उस ने फ्लैट किराए पर ले कर समाचार पत्र का बोर्ड भी लगा दिया। यही नहीं, उस ने धंधे में शामिल लड़कियों से कह रखा था कि कोई पूछे तो बता देना कि वह प्रैस कार्यालय में काम करती हैं।

इस फ्लैट में सैक्स रैकेट चलते अभी एक महीना ही बीता था कि किसी ने इस की सूचना आईजी आलोक कुमार सिंह को दे दी, जिस के बाद पुलिस ने काररवाई की।पुलिस द्वारा गिरफ्तार की गई 19 वर्षीय विनीता सक्सेना मध्यमवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी थी। इंटरमीडिएट पास करने के बाद जब उस ने डिग्री कालेज में प्रवेश लिया तो वहां उस की कई फ्रैंड्स ऐसी थीं जो रईस घरानों से थीं।वे महंगे कपड़े पहनतीं और ठाठबाट से रहती थीं।महंगे मोबाइल फोन रखतीं, रेस्टोरेंट जातीं और खूब सैरसपाटा करती थीं. विनीता जब उन्हें देखती तो सोचती, ‘काश! ऐसे ठाठबाट उस के नसीब में भी होते।
एक दिन एक संस्था के मंच पर विनीता की मुलाकात बरखा मिश्रा से हुई। उस ने विनीता को बताया कि वह समाजसेविका है।राजनेताओं, समाजसेवियों, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों में उस की अच्छी पैठ है।
उस की बातों से विनीता प्रभावित हुई, फिर वह उस से मिलने उस के घर भी जाने लगी।घर आतेजाते बरखा ने विनीता को रिझाना शुरू कर दिया और उस की आर्थिक मदद करने लगी। बरखा समझ गई कि विनीता महत्त्वाकांक्षी है। यदि उसे रंगीन सपने दिखाए जाएं तो वह उस के जाल में फंस सकती है।
इस के बाद विनीता जब भी बरखा के घर आती तो वह उस के अद्वितीय सौंदर्य की तारीफ करती। धीरेधीरे बरखा ने विनीता को अपने जाल में फांस कर उसे देह व्यापार में उतार दिया। घटना वाले दिन वह ग्राहक शेखर गुप्ता के साथ रंगेहाथ पकड़ी गई थी।

सैक्स रैकेट में पकड़ी गई 21 वर्षीय प्रिया के मातापिता गरीब थे।कालेज की पढ़ाई का खर्च व अपना खर्च वह ट्यूशन पढ़ा कर निकालती थी।प्रिया का एक बौयफ्रैंड था, जिस का बरखा मिश्रा के अड्डे पर आनाजाना था।उस ने प्रिया की मुलाकात बरखा से कराई। बरखा ने उसे सब्जबाग दिखाए और उस की पहुंच के चलते उसे नौकरी दिलाने का वादा किया।नौकरी तो नहीं मिली, बरखा ने उसे देह व्यापार में धकेल दिया। प्रिया की एक रात की कीमत 10 से 15 हजार रुपए होती थी। मिलने वाली रकम के 3 हिस्से होते थे,एक हिस्सा संचालिका बरखा का, दूसरा दलाल का तथा तीसरा हिस्सा प्रिया का होता था। घटना वाली शाम वह दीपांकर गुप्ता के साथ पकड़ी गई थी।जिस्मफरोशी का धंधा करते रंगेहाथों पकड़ी गई 40 वर्षीय नेहा सेठी शादीशुदा व 2 बच्चों की मां थी।नेहा का पति शराबी था।वह जो कमाता, शराब पर ही उड़ा देता।नेहा उस से शराब पीने को मना करती तो वह उस की पिटाई कर देता था।एक दिन तो हद ही हो गई। शराब के नशे में उस ने नेहा को पीटा फिर बच्चों सहित घर से निकाल दिया।
तब नेहा बच्चों के साथ मकड़ीखेड़ा में रहने लगी।उस ने बच्चों के पालनपोषण के लिए कई जगह नौकरी की। लेकिन जिस्म के भूखे लोगों ने नौकरी के बजाय उस के जिस्म को ज्यादा तवज्जो दी।नेहा ने सोचा जब जिस्म ही बेचना है तो नौकरी क्यों करे।

उन्हीं दिनों उसे बरखा मिश्रा के सैक्स रैकेट के बारे में पता चला। उस ने एक दलाल के मार्फत बरखा मिश्रा से संपर्क किया, फिर उस के फ्लैट पर धंधे के लिए जाने लगी।घटना वाले रोज वह ग्राहक गौरव सिंह के साथ पकड़ी गई थी।अय्याशी करते पकड़ा गया शेखर गुप्ता धनाढ्य परिवार का है। उस के पिता का सिविल लाइंस में बड़ा अस्पताल है।शेखर बरखा का नियमित ग्राहक था।वह उसे ग्राहक भी उपलब्ध कराता था।इस के बदले में उसे मुफ्त में मौजमस्ती करने को मिल जाती थी।शेखर के संबंध कई बड़े लोगों से थे।शेखर जब पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया तो इन्हीं रसूखदारों ने पुलिस को फोन कर के शेखर को छोड़ देने की सिफारिश की थी। लेकिन पुलिस ने यह कह कर मना कर दिया कि मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में है, इसलिए कुछ नहीं हो सकता।गिरफ्तार हुए नवजीत सिंह उर्फ टाफी सरदार के पिता एक व्यवसायी हैं।नवजीत की पहले कौशलपुरी में कैसेट की दुकान थी।वहां वह अश्लील सीडी बेचने के जुर्म में पकड़ा गया था। बरखा मिश्रा जब कौशलपुरी में सैक्स रैकेट चलाती थी, तभी उस की मुलाकात नवजीत से हुई थी। पहले वह बरखा के अड्डे पर जाता था फिर वह उस का खास एजेंट बन गया,ग्राहकों को लाने के लिए बरखा उसे अच्छाखासा कमीशन देती थी।दीपांकर गुप्ता तथा गौरव सिंह व्यापारी थे।बरखा के खास एजेंट टाफी सरदार से उन की जानपहचान थी। घटना वाले दिन टाफी सरदार ही उन्हें बरखा के अड्डे पर ले गया था।दोनों ने 15 हजार में सौदा किया था।उसी दौरान पुलिस की रेड पर पड़ गई,यद्यपि दोनों ने पुलिस को चकमा दे कर भागने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए।

थाना फीलखाना पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया था जहां से सभी को जिला कारागार भेज दिया गया था।

आजादी की लड़ाई में कैसे सहायक बनी थी पत्रकारिता? अब हो रही हैं कलंकित?

भारत की आजादी से लेकर, आम आदमी के अधिकारों की लड़ाई तक पत्रकारों की कलम से ही इंसाफ की लड़ाई लड़ी गई हैं। भले ही वक्त बदलता रहा और पत्रकारिता के मायने और उद्देश्य भी बदलते रहे, लेकिन पत्रकारिता में लोगों की दिलचस्पी कम नहीं हुई है।दरअसल, 30 मई के दिन भारत में पत्रकारिता की नींव पड़ी थी। 30 मई 1826 को ‘उदन्त मार्तण्ड’ नाम से पहला अखबार का प्रकाशित हुआ था, जिसे पंडित जुगल किशोर शुल्क ने कलकत्ता से प्रकाशित किया था। हालांकि आर्थिक समस्याओं के कारण ये समाचार पत्र लंबे समय तक प्रकाशित नहीं किया जा सका। लेकिन इसने देशी भाषा में प्रेस को प्रोत्साहन दिया और देश के कोने-कोने में राष्ट्रवादी धारणा पहुंचाने में सहायता की।

क्या जानते हैं स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारिता के इतिहास के बारे में…?

बर्बर तानाशाही के प्रति नई चेतना विकसित की
1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता की बर्बर तानाशाही के प्रति नई चेतना विकसित की। भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सुधारों को प्रोत्साहन देने की प्रेरणा मिली। 1868 में उन्होंने काशी से ‘वचन सुधा’ के प्रकाशन के माध्यम से हिंदी लेखकों को प्रेरित किया। इस पत्रिका के माध्यम उन्होंने जन चेतना लाने का कार्य किया और स्त्री पुरुष समानता का समर्थन किया। उन्होंने भारत के स्व-शासन और संपूर्ण संप्रभुता का सपना देखा।हिंदी साहित्य और पत्रकारिता में भारतेंदु के युग को न सिर्फ हिंदी भाषी लोगों में जागरूकता का स्वर्णकाल माना जाता है बल्कि इसने ब्रिटिश दमन का भी कड़ा प्रतिकार किया। 1903 में ‘सरस्वति’ के संपादक का दायित्व महावीर प्रसाद द्विवेदी पर आ गया और हिंदी पुनर्जागरण का तीसरा चरण आरंभ हुआ। इस युग के दौरान कविता में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याएं मुखर हुई जबकि गीतों में सामाजिक जागरण को प्रमुखता मिली।
1907 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने प्रयाग से साप्ताहिक साहित्य का प्रकाशन का शुरू किया और उसी वर्ष माधव राव सप्रे ने नागपुर से हिंद केसरी निकाला। गणेश शंकर विद्यार्थी ने 1910 में कानपुर से ‘जोशिला’ और ‘क्रांतिकारी’ साप्ताहिक प्रताप प्रकाशित किया, जो राष्ट्रवादी युवाओ की आवाज था।
पत्रकारिता के लिए एक और महत्वपूर्ण योगदान 1913 में ‘प्रभा’ का प्रकाशन था, जिसे पहले कालूराम गंगराडे, माखनलाल चतुर्वेदी खंडवा से प्रकाशित करते थे। लेकिन बाद में 1919 में कानपुर की ‘प्रताप’ प्रेस से प्रभा का प्रकाशन निकलने लगा। प्रभा स्वतंत्रता संघर्ष के लिए एक समर्पित समाचार पत्र था। ‘प्रभा’ और ‘प्रताप’ के साथ ‘चांद’ भी एक महत्वपूर्ण पत्रिका थी। चांद से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध राष्ट्रवाद के बीज बोए और स्वाधीनता आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्वतंत्रता संघर्ष में सहायता करने के लिए 1920 में शिव प्रकाश गुप्त ने काशी से ‘आज’ का प्रकाशन शुरू किया। 19 अगस्त 1919 को गांधी जी ने ‘नवजीवन’ का हिंदी संस्करण आरंभ किया। आचार्य शिवपूजन सहाय ने 1922 में मासिक पत्रिका आदर्श का संपादन शुरू किया था। कोलकाता से 26 अगस्त 1923 से हिंदी साप्ताहिक मतवाला की शुरुआत हुई, जिसमें सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, महावीर प्रसाद सेठ, शिवपूजन सहाय, बेचैन शर्मा नवजादिक लाल श्रीवास्तव जैसे प्रसिद्ध साहित्यकारों को आकर्षित किया।1928 से कोलकाता से ही बनवारी दास चतुर्वेदी ने विशाल भारत मासिक का संपादन आरंभ किया और 1933 में गांधी जी ने ‘हरिजन सेवक’ निकाला, जो अस्पृश्यता और गरीबी से उनकी लड़ाई का प्रमुख साधन बना था।लेकिन अब पत्रकारिता की आड़ में देह व्यापार करने बालों की बाढ़ सी आ गई हैं जिसके चलते आज पत्रकारिता कलंकित हो रही हैं?

देह व्यापार को सुप्रीम कोर्ट ने माना हैं वैध पेशा,तो पत्रकारिता की आड़ क्यों?

बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की पुलिस को आदेश दिया है कि उन्हें सेक्स वर्कर्स के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने सेक्स वर्क को प्रोफेशन मानते हुए कहा कि पुलिस को वयस्क और सहमति से सेक्स वर्क करने वाली महिलाओं पर आपराधिक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यहा भी कहा कि‘सेक्स वर्कर्स भी कानून के तहत गरिमा और समान सुरक्षा के हकदार हैं। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल नागेश्वर राव, बीआर गवई और एएस बोपन्ना की बेंच ने सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में 6 निर्देश जारी करते हुए कहा कि सेक्स वर्कर्स भी कानून के समान संरक्षण के हकदार हैं।

कोर्ट ने कहा हैं कि ‘जब यह साफ हो जाता है कि सेक्स वर्कर वयस्क है और अपनी मर्जी से यह काम कर रही है, तो पुलिस को उसमें हस्तक्षेप करने और आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए कोर्ट ने कहा कि इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन का अधिकार है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि जब भी पुलिस छापा मारे तो सेक्स वर्कर्स को गिरफ्तार या परेशान न करे, क्योंकि इच्छा से सेक्स वर्क में शामिल होना अवैध नहीं है, सिर्फ वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है।कोर्ट ने कहा, ‘एक महिला सेक्स वर्कर है, सिर्फ इसलिए उसके बच्चे को उसकी मां से अलग नहीं किया जाना चाहिए,मौलिक सुरक्षा और सम्मानपूर्ण जीवन का अधिकार सेक्स वर्कर और उनके बच्चों को भी है।अगर नाबालिग को वेश्यालय में रहते हुए पाया जाता है, या सेक्स वर्कर के साथ रहते हुए पाया जाता है तो ऐसा नहीं माना जाना चाहिए कि बच्चा तस्करी करके लाया गया है।कोर्ट ने कहा, ‘सेक्स वर्कर्स को भी नागरिकों के लिए संविधान में तय सभी बुनियादी मानवाधिकारों और अन्य अधिकारों का हक है।बेंच ने कहा कि ‘पुलिस को सभी सेक्स वर्कर्स से सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए और उन्हें मौखिक या शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए। न ही उन्हें किसी भी यौन गतिविधि के लिए मजबूर करना चाहिए।माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के बाबजूद भी पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशा की आड़ में पूरे देश के किसी न किसी शहर कस्बे में पत्रकारिता की आड़ में देह व्यापार किया जा रहा हैं और आज के बदलते दौर में पत्रकारिता को उद्योग की तरह देखा जाने लगा है।लोगो का एक मात्र लक्ष्य अब सिर्फ पैसा कमाना ही रह गया और इसके लिए चाहे लोगो को किसी भी हद तक गिरना क्यों न पड़े वो गिरकर ही रहेंगे पैसा और पावर जो मिल जाता हैं और इनदोनो चीजो को एक साथ पाने ले लिए पत्रकारिता को माध्यम बनाया जा रहा हैं।और फिर आजकल रंगीन मिजाज नोकर शाहों की कमी नही हैं चूंकि आज पूरे भारत मे राजनीतिक भ्रष्ट्राचार चरम पर और भ्रष्ट नेताओं सहित नोकारशाहों के पास इतना धन एकत्रित हो चुका हैं कि जिसकी कोई सीमा नहीं हैं।और कहते हैं न कि जब इंसान के पास अनैतिक रूप से कमाया हुआ पैसा आता हैं तो अपने साथ कि कई अबगुन लेकर भी आता हैं जिसमे आय्यासी सबसे पहले आती हैं।और इन पत्रकार रूपी विषकंन्याओं के ये सबसे सरल शिकार होते हैं।आज के बदलते दौर में पत्रकारिता को उद्योग की तरह देखा जाने लगा है।लोगो का एक मात्र लक्ष्य अब सिर्फ पैसा कमाना ही रह गया और इसके लिए चाहे लोगो को किसी भी हद तक गिरना क्यों न पड़े वो गिरकर ही रहेंगे पैसा और पावर जो मिल जाता हैं और इनदोनो चीजो को एक साथ पाने ले लिए पत्रकारिता को माध्यम बनाया जा रहा हैं।और फिर आजकल रंगीन मिजाज नोकर शाहों की कमी नही हैं चूंकि आज पूरे भारत मे राजनीतिक भ्रष्ट्राचार चरम पर और भ्रष्ट नेताओं सहित नोकारशाहों के पास इतना धन एकत्रित हो चुका हैं कि जिसकी कोई सीमा नहीं हैं।और कहते हैं न कि जब इंसान के पास अनैतिक रूप से कमाया हुआ पैसा आता हैं तो अपने साथ कि कई अबगुन लेकर भी आता हैं जिसमे आय्यासी सबसे पहले आती हैं।और इन पत्रकार रूपी विषकंन्याओं के ये सबसे आसान शिकार होते हैं।जिसकी मुख्य वजह यहा होती हैं इनका पूरा परिवार शहरों में निवास करता हैं किंतु ये सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थ होते हैं सप्ताह में ये अपने परिवार से मिलने जाते हैं।बाकी दिनों की आवश्कता ये कंही और मुंह मारकर पूरा करते हैं।कंही कंही तो हालात इतने नाजुक हैं कि रंगीन मिजाज नोकर शाहों के कार्यालयों में इन कथित पत्रकार रूपी विष कन्याओं द्वारा आदेश भी दिया जाता हैं जिसे रंगीन मिजाज साहब के अधीनस्थ कर्मचारियों को चाय के कप गिलास समेत झूठी थाली भी धोनी पड़ती हैं।लेकिन भय और डर के चलते यहां काम कर्मचारियों को करना उनकी मजबूरी बनी हुई हैं।बड़ा सवाल यह हैं कि जब सुप्रीम कोर्ट ने देह व्यापार को वैध कह चुका हैं तो ये सब पत्रकारिता की आड़ में किया जाना कंहा तक उचित हैं?लेकिन पत्रकारिता की आड़ ये देह व्यापार करना पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे को कलंकित करना है।

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