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संविदा कर्मी होने से मातृत्व अवकाश वेतन से इनकार नहीं कर सकते: हाईकोर्ट का अहम फैसला
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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने संविदा कर्मचारियों के हित में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि किसी कर्मचारी के केवल संविदा पर कार्यरत होने के आधार पर उसे मातृत्व अवकाश के वेतन से वंचित नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने एक स्टाफ नर्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के अधिकारियों को उसे मातृत्व अवकाश अवधि का वेतन नियमानुसार तीन माह के भीतर भुगतान करने का निर्देश दिया है।
यह मामला जिला अस्पताल कबीरधाम में संविदा पर कार्यरत स्टाफ नर्स राखी वर्मा द्वारा दायर याचिका से संबंधित है। याचिकाकर्ता ने 16 जनवरी 2024 से 16 जुलाई 2024 तक के लिए मातृत्व अवकाश का आवेदन दिया था, जिसे विभाग द्वारा स्वीकृत भी कर लिया गया था। इस दौरान उन्होंने 21 जनवरी 2024 को एक स्वस्थ कन्या को जन्म दिया और अवकाश समाप्ति के उपरांत 14 जुलाई 2024 को पुनः अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर ली। परंतु, विभाग द्वारा उन्हें अवकाश अवधि का वेतन भुगतान नहीं किया गया, जिसके कारण उन्हें और उनके नवजात शिशु को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वेतन प्राप्ति हेतु उन्होंने 25 फरवरी 2025 को मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के समक्ष आवेदन भी प्रस्तुत किया, लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर अंततः उन्हें न्याय के लिए हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी।
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मातृत्व और शिशु की गरिमा के अधिकार को हमारे संविधान में संरक्षण प्रदान किया गया है। इस संवैधानिक अधिकार को प्रशासनिक अधिकारियों की इच्छा या विवेक पर नहीं छोड़ा जा सकता। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता श्रीकांत कौशिक ने तर्क प्रस्तुत किया कि छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 2010 के नियम 38 के तहत मातृत्व अवकाश एक विधिक अधिकार है और यह अधिकार स्थायी कर्मचारियों की तरह ही संविदा कर्मचारियों पर भी समान रूप से लागू होता है। उन्होंने पूर्व में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों का हवाला भी दिया, जिनमें संविदा महिला कर्मचारियों को मातृत्व लाभ दिए जाने की पुष्टि की गई थी। अधिवक्ता कौशिक ने यह भी तर्क दिया कि वेतन न देना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत प्राप्त समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि यह स्थायी और अस्थायी कर्मचारियों के बीच अनुचित भेदभाव उत्पन्न करता है।
इन तर्कों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए अधिकारियों को तीन माह के भीतर वेतन भुगतान सुनिश्चित करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट के इस फैसले से प्रदेश में कार्यरत हजारों संविदा महिला कर्मचारियों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है।
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