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निगम-मंडलों की दूसरी सूची जल्द: पद पाने की दौड़, नाराजगी और रसूख का खेल
छत्तीसगढ़ की राजनीति में फिर से हलचल मची हुई है। निगम-मंडलों, आयोगों और परिषदों में नियुक्तियों को लेकर पहले से ही खींचतान चल रही थी, और अब जब दूसरी सूची जारी होने की खबरें आ रही हैं, तो दावेदारों में बेचैनी चरम पर है। पद मिलते ही संघर्ष का फल मीठा होता है कहने वाले लोग अब उस मीठे फल के और बड़े टुकड़े की आस लगाए बैठे हैं।
पहली सूची में पुराने, अनुभवी और पहले से पदधारी नेता ही बाजी मार ले गए। नया खून जो संगठन के लिए वर्षों से पसीना बहा रहा था, उसे यह कहकर समझा दिया गया कि अभी 500 और नियुक्तियाँ बाकी हैं। यानी थोड़ा धैर्य रखो, तुम्हारी बारी भी आएगी। सवाल यह है कि जब पहली सूची में पुराने चेहरों को ही मौका देना था तो नए लोगों को सपने क्यों दिखाए गए?
इधर, पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर की अपील भी हवा में उड़ गई। उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से नए चेहरों को अवसर देने की गुजारिश की थी, लेकिन सूची जारी होते ही यह साफ हो गया कि अनुभव को प्राथमिकता दी गई है, और युवा कार्यकर्ताओं के लिए अगली बार" का जुमला फिर से तैयार है।
साय सरकार में दो मंत्रियों के पद अब भी खाली हैं, और इनके भरने की चर्चाएँ पिछले छह महीनों से चल रही हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय खुद कई बार इस मुद्दे पर जल्द ही नियुक्ति होने की बात कह चुके हैं। लेकिन जल्द कब आएगा, यह कोई नहीं जानता। मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद भी नाराजगी सामने आ सकती है, इसलिए सरकार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।
गौरीशंकर श्रीवास ने तो अपने पद को ही ठुकरा दिया। छत्तीसगढ़ राज्य केश शिल्पी कल्याण बोर्ड के उपाध्यक्ष पद को अस्वीकार करते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल दी, लेकिन जल्द ही उसे हटा भी लिया। उनका कहना था कि पार्टी ने बहुत बड़ा पद दिया था, जिसे मैं संभाल नहीं सकता। हालांकि, अंदरखाने में चर्चा यह भी है कि समाज के कुछ लोगों ने उनकी आलोचना शुरू कर दी थी, जिससे बचने के लिए उन्होंने पोस्ट डिलीट कर दी।
अब निगाहें दूसरी सूची पर हैं। जिन कार्यकर्ताओं ने अब तक सिर्फ नारों और झंडों के सहारे पार्टी का समर्थन किया, वे उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस बार उनका भाग्य चमकेगा। लेकिन राजनीति में वादे और उम्मीदें अक्सर लंबी कतार में ही खड़ी रह जाती हैं।
