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500 करोड़ के घोटाले में क्लीन चिट पर हंगामा: गिरफ्तारी वारंट झेल चुके अधिकारी पर उठ रहे गंभीर सवाल
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में कथित 500 करोड़ रुपये के एक बड़े घोटाले से जुड़ा मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। इस प्रकरण में तत्कालीन एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल के लिए कभी गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ था, लेकिन अब सूत्रों के हवाले से उन्हें शासन से क्लीन चिट मिल जाने की खबर है। इस फैसले ने न सिर्फ सभी को चौंका दिया है, बल्कि राज्य में ईमानदारी और जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। जिस अधिकारी पर कभी जांच की आंच थी, वह आज एक महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
जानकारी के अनुसार, यह मामला एक बड़े वित्तीय अनियमितता से संबंधित है, जिसमें श्री अग्रवाल का नाम सामने आया था और उन पर कार्रवाई की तलवार लटक रही थी। गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद ऐसा लग रहा था कि मामले की तह तक जाया जाएगा, लेकिन अचानक उन्हें क्लीन चिट मिलने की खबर ने सबको सकते में डाल दिया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह क्लीन चिट किन आधारों पर दी गई? शासन की ओर से इस संबंध में कोई स्पष्ट बयान या दस्तावेजी साक्ष्य सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, जिससे इस निर्णय की पारदर्शिता पर संदेह के बादल मंडरा रहे हैं।
इस आधारहीन क्लीन चिट के पीछे पर्दे के पीछे किसी 'बड़ी डील' की आशंकाएं जताई जा रही हैं। बिना किसी वसूली के, एक बड़े घोटाले के आरोपी को बरी कर देना, कई तरह की चर्चाओं को जन्म दे रहा है। नौकरशाही और आमजनता के बीच यह संदेश जाने लगा है कि धन और प्रभाव रखने वाले व्यक्तियों के लिए कानून के मायने अलग हैं। यह प्रकरण राज्य में 'चीजें मैनेज हो जाने' और प्रभावशाली लोगों द्वारा कानून को 'अपने पैरों तले रौंदने' जैसी नकारात्मक धारणाओं को बल दे रहा है, जो सुशासन के लिए एक चिंताजनक स्थिति है।
हालांकि सरकार ने नामांतरण वापस लेने जैसे कुछ अच्छे फैसले लिए हैं, लेकिन ऐसे गंभीर प्रकरणों में पारदर्शिता और कठोर कार्रवाई की इच्छाशक्ति दिखाना आवश्यक है। इस मामले ने सरकार की छवि पर सवाल उठाए हैं। समय आ गया है कि सरकार तीर्थराज अग्रवाल प्रकरण में स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से या तो सभी तथ्यों को सार्वजनिक करे या फिर ऐसे मामलों में सख्त संदेश देने के लिए निर्णायक कदम उठाए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि राज्य में कानून का राज है।
