खाकी वर्दी पर दाग! महादेव सट्टा एप: ED की जासूसी करता था पुलिस का 'मुखबिरी नेटवर्क', एडिशनल एसपी का नाम सामने!

रायपुर। महादेव सट्टा एप महाघोटाले में हर दिन नए और बेहद संगीन खुलासे हो रहे हैं, जो पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। अब तक की सबसे चौंकाने वाली बात सामने आई है—इस गोरखधंधे के प्रमोटर्स को बचाने के लिए बाकायदा 'मुखबिरी का नेटवर्क' चलाया जा रहा था और हैरानी की बात ये है कि इस नेटवर्क में खुद पुलिस के अधिकारी शामिल थे। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग (आईटी) जैसी केंद्रीय एजेंसियों के अफसरों की गतिविधियों की जासूसी कर, रेड पड़ने से पहले ही सट्टेबाजों को अलर्ट कर दिया जाता था।

एडिशनल एसपी के 'आशीर्वाद' से चलता था जासूसी का खेल!

ईडी की चार्जशीट ने इस 'ऑपरेशन मुखबिरी' का खुलासा किया है। चार्जशीट के अनुसार, रायपुर के तत्कालीन एडिशनल एसपी अभिषेक माहेश्वरी ने केंद्रीय एजेंसियों के मूवमेंट की जानकारी एएसआई चंद्रभूषण वर्मा को दी। एएसआई वर्मा इस सूचना को सुनील ओटवानी, डॉ. सलिक, अरविंद गोयनका, सतीश चंद्राकर समेत कई लोगों को व्हाट्सएप पर भेजकर संभावित कार्रवाई के प्रति आगाह करते थे। इस जासूसी तंत्र में पुलिसकर्मियों के अलावा होटल स्टाफ, चाय वाले और यहां तक कि सरकारी दफ्तरों के चपरासी तक शामिल थे, जो ईडी की हर चाल पर नज़र रखते थे।

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होटलों से कंट्रोल होता था 'मुखबिरी नेटवर्क'!

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राजधानी के कई बड़े होटल, जैसे VW Canyon, ग्रैंड इंपीरिया, बेबीलोन कैपिटल और ट्राइटन, इस नेटवर्क के अहम ठिकाने थे। जैसे ही केंद्रीय एजेंसी का कोई अफसर इन होटलों में रुकता, फौरन इसकी जानकारी हेड कांस्टेबल संदीप दीक्षित और राधाकांत पांडे को दी जाती। ये हेड कांस्टेबल अपने एडिशनल एसपी को अपडेट करते और फिर ये 'खुफिया जानकारी' एएसआई वर्मा के जरिए सट्टा किंगपिन तक पहुंच जाती। ईडी दफ्तर के बाहर तैनात स्थानीय मुखबिरों (चाय वाले, वेंडर) का भी नेटवर्क था, जो अधिकारियों की आवाजाही पर नज़र रखते थे।

पूछताछ में एएसआई चंद्रभूषण वर्मा ने स्वीकार किया कि एडिशनल एसपी ने ही उन्हें यह जिम्मा सौंपा था कि वे सरकार से जुड़े उन लोगों को केंद्रीय एजेंसियों की संभावित कार्रवाई के बारे में अलर्ट करें। वर्मा ने माना कि उन्होंने कई बार व्हाट्सएप के जरिए ऐसे अलर्ट मैसेज भेजे।

यह खुलासा बताता है कि महादेव सट्टा एप सिर्फ पैसों का खेल नहीं था, बल्कि 'सट्टा, सत्ता और सिस्टम' की एक गहरी तिकड़ी थी, जिसने कानून को ही अपनी ढाल बना लिया था। जब वर्दीधारी ही मुखबिर बन जाएं, तो ईमानदार जांच कैसे संभव होगी? यह छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक तंत्र की साख पर एक बड़ा दाग है, जिसका जवाब सरकार को देना ही होगा।

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