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सुशासन पर दाग़! 500 करोड़ के ज़मीन घोटाले के आरोपी SDM को मंत्री का OSD बनाकर किसे साध रही भाजपा? 'क्लीन चिट' पर उठे गंभीर सवाल
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में ज़मीनों का खेल कोई नया नहीं है। यहां वर्षों से भूमाफिया और भ्रष्ट नौकरशाही की मिलीभगत से करोड़ों-अरबों के वारे-न्यारे हो रहे हैं। इसी खेल का एक बड़ा मामला, रायगढ़ जिले का 500 करोड़ रुपये का चर्चित ज़मीन घोटाला, एक बार फिर सुर्खियों में है। वजह? इस प्रकरण में कभी जिसके लिए गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ था, उस तत्कालीन एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल को सुशासन की सरकार ने अचानक क्लीन चिट दे दी है। इतना ही नहीं, जनाब अब सरकार में वन व सिंचाई मंत्री के OSD बनकर पूरा विभाग सम्हाल रहे हैं। ऐसे में ये फैसला साय सरकार की ईमानदारी और जवाबदेही पर सीधा सवालिया निशान लगाता दिख रहा है और सुशासन अब कोरी कल्पना ही लग रही है।
करोड़ों के इस खेल का पूरा मामला साल 2014 का है। तब राज्य प्रशासनिक सेवा के 2008 बैच के अधिकारी तीर्थराज अग्रवाल रायगढ़ में एसडीएम थे। एनटीपीसी के लारा प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन अधिग्रहण चल रहा था। आरोप लगे कि एसडीएम ने नियमों को ताक पर रखकर कुछ ज़मीन अधिग्रहित की और बदले में मुआवजे के नाम पर 500 करोड़ रुपये का बड़ा खेल कर दिया। यह खेल इतना बड़ा था कि तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल भी सकते में आ गए थे। कलेक्टर मुकेश बंसल ने इसकी गहन जांच कराई और 1300 पन्नों की रिपोर्ट सरकार को भेजी। उन्होंने तत्कालीन एसपी राहुल भगत से चर्चा कर पुलिस में मुक़दमा भी दर्ज कराया था।
उस रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने एसडीएम को सस्पेंड कर दिया था और उन पर कार्रवाई की तलवार लटक रही थी। गिरफ्तारी वारंट भी जारी हुआ था। मज़े की बात यह है कि आज आईएएस मुकेश बंसल और तत्कालीन एसपी राहुल भगत, दोनों ही साय सरकार में मुख्यमंत्री के दफ़्तर में पदस्थ हैं, लेकिन जिस अफ़सर पर उन्होंने कार्रवाई की अनुशंसा की थी, उस पर अब उन्हें कोई कार्रवाई ज़रूरी नहीं लग रही। पौने दो साल के सस्पेंशन के बाद बहाल हुए तीर्थराज अग्रवाल को अचानक यह आधारहीन क्लीन चिट मिलना कई सवाल खड़े करता है। किस विशेष वज़ह से यह क्लीन चिट दी गई? शासन की ओर से इस निर्णय को लेने की इतनी 'उत्सुकता' क्यों थी? यह सब जांच का विषय है।
इस क्लीन चिट के पीछे पर्दे के पीछे की कई कहानियां बाज़ारों में तैर रही हैं। बिना किसी वसूली के एक बड़े घोटाले के आरोपी अफ़सर को बरी करना, लोगों को सब समझ आ रहा है। आम जनता में यह बात घर कर गई है कि 'पॉवरफुल' लोगों के लिए क़ानून के मायने अलग हैं। 'सुशासन की सरकार में भ्रष्टाचार का पैमाना भी शायद अलग-अलग तय हो रहा है। एक ओर भारत माला प्रोजेक्ट में ज़मीन के खेल में गिरफ्तारियां हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर दूसरे बड़े ज़मीन घोटाले में शामिल अफ़सर को मंत्री का OSD बनाकर सुशासन लागू करवाने की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई है। ज़ाहिर है, ऐसी स्थिति सुशासन के लिए चिंता का विषय बनती है। आख़िर एक अफ़सर पर इतनी 'मेहरबानी' किसके निर्देश पर की गई है, यह बड़ा सवाल है? विपक्ष ने भी इस बड़े मामले में अपनी चुप्पी क्यों साध रखी है, यह भी समझ से परे है।
