राष्ट्रीय जगत विजन : छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खुद पर दर्ज 420 की FIR के खात्मे के चक्कर में गई तत्कालीन कलेक्टर की जान ? सौम्या चौरसिया से विवाद, चर्चा में खात्मा रिपोर्ट
रायपुर / दिल्ली : बड़ी खबर छत्तीसगढ़ से, रायपुर सेंट्रल जेल में बंद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उपसचिव सौम्या चौरसिया के अपराधों की फेहरिस्त लगातार लम्बी होती जा रही है, इस मामले में एक सनसनीखेज खुलासा हुआ है, बताते है कि अदालत में कलेक्टर की मनचाही रिपोर्ट के लिए सौम्या चौरसिया लम्बे अरसे से दुर्ग की तत्कालीन कलेक्टर पर दबाव डाल रही थी। बताते है कि यह वरिष्ठ IAS अधिकारी अचानक किसी बीमारी से ग्रसित हो गई और बाद में उनकी प्रशासनिक मौत हो गई । उनकी प्रशासनिक मौत संदेहजनक बताई जा रही है उसके बाद ओ लंबी अवकाश पर चली गई । सूत्र बताते है कि भूपेश को अदालती कार्यवाही से बचाने के लिए सौम्या कई साजिशो को अंजाम दे रही थी।
सूत्र बताते है कि एक बड़ी साजिश में महीनो से जमी धूल भी धीरे-धीरे साफ हो रही है। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए खुद के खिलाफ दर्ज 420 के प्रकरण का दुर्ग की एक अदालत से खात्मा करा लिया है। इसके लिए अदालत और जांच अधिकारियो के बीच तालमेल बैठा कर प्रकरण का खात्मा कराया गया था।
बताते है कि राज्य के विधि सचिव राम कुमार तिवारी के माध्यम से इस प्रकरण को खात्मा करने का फार्मूला तय किया गया था। अदालत से प्रकरण के खात्मे के बाद महीनो तक भी दस्तावेजों और फाइलों की ओर रुख तक ही नहीं किया गया था।
अब खबर आ रही है कि मामले से जुड़े कई दस्तावेज EOW और विधि विभाग से गायब है, अधिकारी इन मामलो से दूर रहना ही मुनासिब समझ रहे है। सूत्र बताते है कि प्रकरण को अपील में न भेजने के लिए जिम्मेदार अधिकारियो पर इतना अधिक राजनैतिक दबाव था कि उन्होंने मामले की विवेचना से ही किनारा कर लिया था। इस मामले को कमजोर करने के साफ निर्देश थे।
नतीजतन आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो द्वारा ही मामले की विवेचना के लिए रफा दफा जाँच वाली प्रक्रिया अपना कर अदालत में खात्मा प्रकरण भेज दिया था। इस पर इंतजार कर रही अदालत ने भी बगैर आपत्ति दर्ज किये अपनी मुहर लगा दी थी। सूत्र बताते है कि राज्य में अनिल टुटेजा नामक शख्स के संपर्क में कई न्यायिक अधिकारी उसके निर्देश पर फैसले दे रहे है, इसमें शिकायतकर्ता गवाह, आरोपी और जज सब कुछ पुलिस तय करती है, मुहर सिर्फ अदालत की लगती है।
सूत्रों का दावा है कि न्यायपालिका में सेंधमारी कर सीएम के प्रभावशील अधिकारियो ने अदालती फरमान जारी करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके लिए दुर्ग जिले की तत्कालीन कलेक्टर से मन माफिक रिपोर्ट सौपने के लिए उस पर भी भारी भरकम दबाव डाला गया था। बताते है कि मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ सौम्या चौरसिया ने 420 के प्रकरण के खात्मे के लिए तत्कालीन महिला कलेक्टर से काफी वाद विवाद किया था।
उन्हें मुख्यमंत्री आवास के कार्यालय में सत्कार के दौरान चाय में कोई नशीला-जहरीला पदार्थ दिया गया था। सूत्र बताते है कि पीड़ित कलेक्टर से इस दौरान आधी अधूरी, अल्प विवेचना कर ऐसी रिपोर्ट अदालत को सौपी गई थी, जिससे सीएम बघेल के प्रकरण के खात्मे में सीधी मदद मिल सके। बताया जाता है कि इस घटना के बाद पीड़ित कलेक्टर चंद दिनों में ही जानलेवा बीमारी का शिकार हो गई थी।
जानकारी के मुताबिक वर्ष 2016-17 में एक शिकायत के बाद आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और उनके परिजनों को बड़े जमींन घोटाले की जाँच में प्राथमिक रूप से दोषी पाया था, इसके बाद मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कार्यवाही के निर्देश दिए थे। बताते है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री के कार्यकाल में मामले की पूर्ण विवेचना की गई थी। इसके उपरांत भूपेश बघेल समेत उनके अन्य परिजनों के खिलाफ भिलाई के एक थाने में FIR दर्ज कराई थी।
जमींन घोटाला साडा की एक योजना के मूल नियम कायदो को दरकिनार कर अंजाम दिया गया था। इसका सीधा लाभ साडा के तत्कालीन पदाधिकारियों समेत भूपेश बघेल को भी हुआ था। बताते है कि मानसरोवर आवासीय योजना के तहत LIG ग्रेड के 12 प्लॉट बघेल ने अपनी पत्नी और मां के नाम आवंटित करवा लिए थे। इसके बाद सभी 12 प्लॉटों को मिलाकर उन्होंने अपना बड़ा आवास बनाया था।
मामला मध्य प्रदेश के दौर का है, जब छत्तीसगढ़ विभाजित नहीं हुआ था, कांग्रेसी बताते है कि जब भूपेश बघेल ने यह प्लाट ख़रीदे थे तब ना तो छत्तीसगढ़ का गठन हुआ था और ना ही वे कांग्रेस के किसी बड़े ओहदे पर नियुक्त थे। उनके मुताबिक सालो पुराने मामले को बीजेपी सरकार ने जैसा एक तरफ़ा दर्ज किया था, वैसा उसका खात्मा भी हो गया।
छत्तीसगढ़ में IT-ED की लगातार छापेमारी के बीच कई ऐसी चैट सामने आ रही है, जो बताती है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सत्ता की चाबी विवादित अधिकारियो को सौप रखी थी। इनमे प्रमुख रूप से अनिल टुटेजा,शेख आरिफ,आनंद छाबड़ा और सौम्या चौरसिया जैसे जिम्मेदार अधिकारी मुख्यमंत्री के संवैधानिक अधिकारों का उपयोग गैरकानूनी गतिविधियों के लिए कर रहे थे। प्रवर्तन निर्देशालय ने शीर्ष अदालत में भी अखिल भारतीय सेवाओं के चुनिंदा अधिकारियो की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाए है।
बताते है कि मुख्यमंत्री बघेल के खिलाफ जो भी मुँह खोल रहा है, उसे ठिकाने लगाने की पुलिसिया कार्यवाही चर्चा में है। सूत्र बताते है कि सेक्स सीडी कांड में रिंकू खनूजा की संदेहजनक मौत का मामला चिंता जनक है, पीड़ित परिजन बताते है कि उसने आत्महत्या नहीं की बल्कि कुख्यात IPS अधिकारियो की टोली ने उसे मौत के घाट उतारा था।
बताया जाता है कि रिंकू खनूजा की मौत सवालों के घेरे में है, सेक्स सीडी कांड के गुनाहगारो ने अपनी असलियत जाहिर होने से पहले रिंकू को ठिकाने लगा दिया था। बताते है कि ऐसा ही कुछ हाल उस कलेक्टर का भी हुआ था, जिन्होंने सौम्या चौरसिया को मन चाही रिपोर्ट सौपने के मामले में इंकार के साथ फटकार भी लगाई थी।
सूत्र बताते है कि सौम्या और कलेक्टर मैडम के बीच करीब 10-15 मिनट तक हॉट टॉक हुई थी, इस दौरान सौम्या ने कलेक्टर को राह से हटाने की ठान ली थी। सूत्र बताते है कि सौम्या चौरसिया अपने बैग के किसी गुप्त जेब में स्लो पॉइजन भी रखती है, उसे जो पसंद नहीं आता उसे धीमे जहर से ठिकाने लगा दिया जाता है।
राज्य के 36 हजार करोड़ के नान घोटाले के लगभग सभी गवाह अपने बयानों से मुकर चुके है। इस मामले से जुड़े कई साक्ष्य जमानत पर रिहा आरोपियों ने नष्ट कर दिए है, अदालती कार्यवाही बाधित करने के लिए मुख्यमंत्री की संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
प्रवर्तन निर्देशालय ने सीएम की कार्यप्रणाली से जुड़े सबूत भी कोर्ट में पेश किये है, ऐसे गंभीर मामलो में शामिल अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियो की कार्यप्रणाली सुर्खियों में है।
दुर्ग की इस ईमानदार महिला कलेक्टर की दास्तान बेहद गंभीर है, बतौर कलेक्टर के रूप में पीड़ित अधिकारी ने अपने दफ्तर से ऐसी दूरियां बनाई की दोबारा इस जिले तो क्या प्रदेश को ही छोड़ कर चली गयी । उन्होंने मुख्यमंत्री और उनकी टोली का रूप रंग देखा था, सूत्र बताते है कि साहब के दबाव में CS कार्यालय चुप्पी साधे रहा जबकि मुख्यमंत्री के बंगले में ही इंसाफ की आवाज़ का गला लगातार दबाया जाता रहा । लिहाजा पीड़ित कलेक्टर नौकरी छोड़ यहां से विदा हो गयी । यह भी अधिकारी बताते है कि ऐसे माहौल में कलेक्टरी करने के बजाय उन्होंने छत्तीसगढ़ छोड़ कर पढ़ाई लिखाई के लिए बाहर जाना ही मुनासिब समझा था। एक IAS अधिकारी का सपना होता है कलेक्टर और चीफ सेक्रेटरी के पद पर पहुँचना । प्रदेश में राजनीति के अपराधीकरण से ईमानदार अधिकारियों के बुरे हाल है , उनकी कार्यप्रणाली का कत्ल हो रहा है , कलेक्टर और कलेक्टरी के पदों की जान जा रही
साभार न्यूज टुडे