शहर के चर्चित और नामि बड़े कोयला कारोबारी का बड़ा खेल….. नियम कानून को ताक पर रख……आदिवासियों की 50 एकड़ जमीन पर किया कब्जा…….डरा धमका कर सरपंच से मांगा NOC
बिलासपुर : ग्राम खरगहनी और पथर्रा के ग्रामीणो ने एक बार फिर महावीर कोलवाशरी और जैन बन्धुओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दो साल पहले कोलवाशरी प्लान्ट के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद एक बार फिर सभी ग्रामीण लामबन्द हो गए हैं। पूर्व सरपंच समेत अन्य ग्रामीणों ने बताया कि जैन बन्धुओं ने प्रशासन से मिली भगत कर आदिवासियों की लगभग पच्चास एकड़ से अधिक जमीन हड़प लिया है। जबकि गांव के आदिवासी अपना जमीन भी नहीं बेचना चाहते थे। बावजूद इसके डरा धमकाकर जैन बन्धुओं ने ना केवल आदिवासियों की जमीन को गलत तरीके से हथियाया। बल्कि आज जमीन के मालिक आदिवासियों को दो जून की रोटी के लिए दर दर भटकने को मजबूर होना पड़ रहा है। पूर्व सरपंच ने बताया कि जैन के गुर्गों ने दबाव डालकर एनओसी हासिल करना चाहा। एक बार फिर जनसुनवाई कर क्षेत्र में कोलवाशरी खोलना चाहते हैं। हम एक बार फिर ना केवल कोलवाशरी के लिए जनसुनवाई का विरोध करेंगे। बल्कि अपने क्षेत्र में कोलवाशरी हरगिज नहीं खोलने देंगे।
खरगहनी और पथर्रा के ग्रामीणों नें 10 मई को होने वाली जनसुनवाई का विरोध करने का फैसला किया है। एक्टिविस्ट दिलीप अग्रवाल और पूर्व सरपचं ने महावीर कोलवाशरी के मालिक जैन बन्धुओं पर आदिवासियों की जमीन हड़पने का आरोप लगाय है। दिलीप अग्रवाल और राजेश साहू ने बताया कि खरगहनी और पथर्रा गांव आदिवासी बहुल गांव है। यहां शासन का पेशा कानून लागू है। बावजूद इसके जैन बन्दुओं ने आदिवासियों की एकड़ो जमीन जिला प्रशासन से मिली भगत कर हड़प लिया है।
नियम के विरुद्ध जाकर चालिस से पच्चास एकड़ जमीन की खरीदी
नियमानुसार आदिवासियों की जमीन को केवल कलेक्टर ही बेचने की अनुमति दे सकता है। नियम को केन्द्र में जमीन बेचने वाले आदिवासी की कुल जमीन का पता लगाया जाता है। काफी छानबीन के बाद आदिवासी के लिए जीविकोपार्जन के लिए जमीन छोड़कर बाकी हिस्सा बेचा जा सकता है। लेकिन खरगहनी में जिन आदिवासियों से जैन बन्धुओं ने जमीन खरीदा है। आज उनके पास कुल जमीन का चालिस प्रतिशत जमीन होने की बात तो दूर ही है। उनके पास आज जमीन का एक टुकड़ा भी नहीं बचा है। जाहिर सी बात है कि जमीन खरीदी के समय जैन बन्धुओं ने प्रशासन के साथ मिलकर जमकर तीन तेरह का खेल रचाया है। आज जमीन के मालिक आदिवासी भीख मांगने को मजबूर हैं।
अपने ड्रायवर झारखंड निवासी किसी पाल के नाम पर खरीदी गयी जमीन
एक्टिविस्ट दिलीप अग्रवाल और पूर् सरपंच ने बताया कि महावीर कोलवाशरी संचालक जैन बन्धुओं ने स्थानीय आदिवासियों की जमीन सबसे पहले झारखण्ड के फर्जी आदिवासी के नाम पर खरीदा है। फर्जी आदिवासी झारखण्ड का रहने वाला है। और वह जैन बन्धुओं के यहां ड्रायवर का काम करता है। इसके बाद फर्जी आदिवासी से जैन बन्धुओं ने जमीन खरीदा। सवाल उठता है कि जैन बन्धु स्थानीय आदिवासियों की जमीन को नियमानुसार कलेक्टर से हासिल कर सकते थे। फिर उन्हें अपने फर्जी आदिवासी ड्रायवर के नाम जमीन खरीदने की जरूरत क्या पड़ गयी। और फिर उससे उन्होने जमीन क्यों खरीदा। जाहिर सी बात है कि दाल में कुछ काला नहीं। बल्कि पूरी दाल ही काली है।
सवाल यह भी उठता है कि आखिर फर्जी ड्रायवर के पास करोड़ों रूपये आया कहां से।
पूर्व सरपंच पर डाला गया दबाव
पूर्व सरपंच राजेश साहू ने बताया कि जैन बन्धुओं की तरफ से शुरूआत में जानकारी मिली कि खेती के लिए जमीन खरीद रहे हैं। तात्कालीन समय जानकारी नहीं थी कि आदिवासियों की जमीन भी जैन बन्धु खरीद रहे हैं। बाद में जानकारी मिली कि खरगहनी में कोलवाशरी डाला जाएगा। इसके बाद ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित किया गया कि क्षेत्र में कोलवाशरी नहीं खोला जाएगा।
राजेश ने बताया कि महावीर कोलवाशरी का मुंशी एनओसी लेने आया। ग्राम पंचायत के फैसले के अनुसार मैने एनओसी पर लिखा कि जमीन पर खेती के लिए एनओसी दिया जाता है। इस बात को लेकर मुंशी ने धमकी भी दिया। और कहा कि हम खेती नहीं..उद्योग स्थापित करने आए हैं।
एसडीएम कार्यालय में तीन दिन तक बैठाया
राजेश साहू ने बताया कि एनओसी लेने के लिए महावीर कोलवाशरी के इशारे पर तत्कालीन एडीएम ने अपने कार्यालय में सुबह से शाम तक तीन दिन तक बैठाया। फिर छेड़छाड़ आरोप लगाकर जेल भेजने की धमकी भी दिया। बावजूद इसके एनओसी नहीं दिया।
पिछली जनसुनवाई का किया गया विरोध
दिलीप अग्रवाल ने बताया कि पिछली जनसुनवाई का इन्ही मुद्दों को लेकर विरोध किया गया था। प्रशासन को सुनवाई निरस्त करना पड़ा। नियमानुसार जब ग्राम पंचायत ने स्पष्ट कर दिया है कि क्षेत्र में कोलवाशरी नहीं खुलने देंगे। ऐसी स्थिति में दुबारा जनसुनवाई का कोई मतलब नहीं है। लेकिन प्रशासन से मिली भगत कर ग्रामीणों के बीच में रूपया बांटा जा रहा है। लेकिन हम जनसुनवाई का ना केवल विरोध करेंगे। बल्कि क्षेत्र में कोलवाशरी भी नहीं खुलने देंगे।
राजस्व मंडल, उच्च न्यायालय और केन्द्रीय एजेंसी ईडी के पास जा कर सौंपेंगे दस्तावेज
दिलीप और राजेश ने बताया कि बात केवल आदिवासियों की जमीन को लेकर नहीं है। बल्कि कोलवाशरी विऱोध के अन्य कई कारण जैसे सामाजिक, पर्यावरण और सांस्कृति मुद्दा भी है। यह हम जानते ही है कि आदिवासी क्षेत्र में पेशा कानून सक्रिय है। बावजूद इसके जैन बन्धुओं ने इसे नजर अंदाज किया है। ऐसी सूरत में हमारे सामने एक मात्र कोर्ट का रास्ता है। हम ईडी के पास भी जाएंगे।
कलेक्टर ने भी नाराजगी जाहिर किया
दिलीप अग्रवाल ने बताया कि मामले को लेकर हम भाजपा नेत्री हर्षिता पाण्डेय के साथ कलेक्टर से भी मुलाकात किए हैं। उन्होने माना कि आदिवासी क्षेत्र में कोलवाशरी खुलना और जमीन अधिग्रहण किया जाना गलत है। उन्होने कहा कि यदि एक भी आदिवासी जमीन का खसरा बताएं तो हम कार्यवाही करेंगे। उस दौरान उन्होने उद्योगि नीति पालन करने के सवाल पर नाराजगी भी जाहिर किया। हम जल्द ही खसरे के साथ कलेक्टर से एक बार फिर शिकायत करेंगे।