भर्ती-पदोन्नति में योग्यता तय करना नियोक्ता का हक, हाईकोर्ट ने बदली नियमावली को सही ठहराते हुए कर्मचारियों की याचिका की खारिज

 

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ कहा है कि किसी भी पद पर नियुक्ति या पदोन्नति के लिए आवश्यक योग्यताएं और मानदंड निर्धारित करना पूरी तरह से नियोक्ता के अधिकार क्षेत्र में आता है। मुख्य न्यायाधीश श्री रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति श्री बी.डी. गुरु की डिवीजन बेंच ने यह महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए हाईकोर्ट के ही 16 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों द्वारा पदोन्नति नियमों में बदलाव को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि नियोक्ता को अपनी संस्थागत जरूरतों, कार्य की प्रकृति और बदलते वक्त के तकाजे के मुताबिक आवश्यक या वांछनीय योग्यताएं तय करने की पूरी स्वतंत्रता है।

दरअसल, यह मामला हाईकोर्ट रजिस्ट्री में सहायक ग्रेड-3 के पद पर पदोन्नति के लिए अपनाए गए नए नियमों से जुड़ा था। याचिकाकर्ता श्री भीम बलि यादव सहित 15 अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने हाईकोर्ट प्रशासन द्वारा 24 फरवरी 2022 को जारी उस अधिसूचना को चुनौती दी थी, जिसके तहत 2017 में बने सेवा नियमों के अनुसार पदोन्नति के लिए लिखित परीक्षा और कौशल परीक्षा को अनिवार्य कर दिया गया था। याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि वे लगभग 15 से 20 वर्षों से एक ही पद पर कार्यरत हैं और उनकी नियुक्ति पुराने सेवा नियमों (वर्ष 2003 व 2015) के तहत हुई थी, जिनमें पदोन्नति के मानदंड अलग थे। उनका कहना था कि पुराने नियमों के मुताबिक, स्नातक या 12वीं उत्तीर्ण (निर्धारित टाइपिंग परीक्षा पास) होने और न्यूनतम सेवा अवधि पूरी करने पर वे पदोन्नति के पात्र थे, इसलिए उन पर नए नियम लागू करना प्रतिकूल और अन्यायपूर्ण है। उन्होंने 5 मार्च 2022 को आयोजित लिखित व कौशल परीक्षा का भी विरोध किया था।

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वहीं, हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि समय और कार्य की जरूरत के हिसाब से नियमों में संशोधन किया गया है। वर्ष 2017 में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय सेवा (नियुक्ति, सेवा की शर्तें एवं आचरण) नियम लागू होने के साथ ही पुराने नियम स्वतः समाप्त हो गए हैं। इन नए नियमों में सहायक ग्रेड-3 के 25 प्रतिशत पद सीमित प्रतियोगी परीक्षा (लिखित व कौशल परीक्षा) के माध्यम से पदोन्नति द्वारा भरे जाने का प्रावधान है, जो कि संस्थागत हित में है। प्रशासन ने यह भी इंगित किया कि 2015 में जब 10% पद सीमित प्रतियोगी परीक्षा से भरने का नियम आया था, तब याचिकाकर्ताओं ने उसे चुनौती नहीं दी थी।

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दोनों पक्षों को सुनने के बाद डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में साफ किया कि नियोक्ता ही यह तय करने के लिए सबसे उपयुक्त है कि किसी पद के लिए क्या योग्यताएं होनी चाहिए। न्यायालय नियमों की वैधानिकता या स्पष्टता की कमी होने पर ही हस्तक्षेप कर सकता है, लेकिन वह नियोक्ता द्वारा निर्धारित योग्यताओं को बदल नहीं सकता और न ही वांछनीय योग्यताओं को अनिवार्य योग्यताओं के बराबर मान सकता है। यह कहते हुए अदालत ने सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिससे पदोन्नति में लिखित व कौशल परीक्षा की अनिवार्यता का रास्ता साफ हो गया है।

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