बिलासपुर : ड्रीमलैंड स्कूल में 4 करोड़ से अधिक का फूटा घोटाला …….… प्राचार्य ने एक साल में तीन अलग-अलग ऑडिट रिपोर्ट पेश किया………… हर बार Listen to this बचत राशि बदलती रही……… आडिट टीम ने पकड़ी गड़बड़ी…
बिलासपुर : ड्रीमलैंड हाई सेकेंडरी स्कूल सरकंडा, बिलासपुर में 2015 से 2020 तक के वित्तीय संचालन में गंभीर अनियमितताएँ सामने आई हैं। शिक्षा विभाग द्वारा गठित जांच समिति ने विद्यालय के वित्तीय दस्तावेजों और ऑडिट रिपोर्ट्स की जांच के बाद पाया कि स्कूल ने 2200 से अधिक छात्रों से अवैध शुल्क वसूला और इसके साथ ही बचत राशि और आय-व्यय के आंकड़ों में गड़बड़ियाँ कीं। यह मामला अब एक बड़े विवाद का रूप ले चुका है, और शिक्षा जगत में चिंता का विषय बन गया है। यह मामला न केवल स्कूल की वित्तीय स्थिति पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में भी गंभीर चिंता उत्पन्न करता है।
बचत राशि में भारी अंतर
ड्रीमलैंड स्कूल के द्वारा दी गई बचत राशि को लेकर गंभीर असंगति सामने आई है। जांच समिति के अनुसार, स्कूल के वित्तीय दस्तावेज़ों में प्राप्त आंकड़ों के आधार पर बचत राशि ₹4,59,69,204 बताई गई थी। हालांकि, संस्था द्वारा प्रस्तुत पाँच वर्षों की ऑडिट रिपोर्ट में यह राशि केवल ₹43,93,618 दिखाई गई। यह भारी अंतर इस सवाल को जन्म देता है कि स्कूल प्रशासन ने बचत राशि को कम क्यों दिखाया?
इसके अलावा, जांच समिति ने स्कूल के खर्चों और आय में भी विसंगतियाँ पाई हैं, जो यह दर्शाता है कि वित्तीय प्रबंधन में जानबूझकर गड़बड़ी की गई हो सकती है।
बचत राशि में भारी अंतर
वर्ष 2015 से 2020 तक के वित्तीय रिकॉर्ड के अनुसार संस्था ने जो बचत राशि ₹4.59 करोड़ दर्शाई थी, वह रिकॉर्ड से मेल नहीं खाती। ऑडिट रिपोर्ट में यह राशि मात्र ₹43 लाख दिखाई गई। यह अंतर वित्तीय पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है और इसे लेकर और गहन जांच की आवश्यकता है।
ऑडिट रिपोर्ट में भी अनियमितता
संस्था की ऑडिट रिपोर्ट में भी कई समस्याएँ सामने आई हैं, जो वित्तीय संचालन में गंभीर अनियमितताओं का संकेत देती हैं। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि संस्था ने एक ही वर्ष में तीन बार ऑडिट किया और हर बार अलग-अलग रिपोर्ट प्रस्तुत की। इन रिपोर्ट्स में मुख्य रूप से “Maintenance charges” और “Donation की आय का उल्लेख था, जबकि छात्रों से ली गई फीस का कोई विवरण नहीं था। यह इस ओर इशारा करता है कि स्कूल ने जानबूझकर छात्रों की फीस का विवरण छुपाने का प्रयास किया।
ऑडिट रिपोर्ट में बच्चों से ली गई फीस का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड या रसीद भी नहीं दी गई, जो एक महत्वपूर्ण वित्तीय दस्तावेज़ होता है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या संस्था ने आय को कम दिखाने और संचयी फीस का विवरण छुपाने की कोशिश की है?
स्कूल की ऑडिट रिपोर्ट सत्यता पर सवाल
एक ही वर्ष में तीन बार ऑडिट करने और हर बार अलग-अलग रिपोर्ट प्रस्तुत करने से यह साबित होता है कि संस्था का वित्तीय प्रबंधन पारदर्शी नहीं था। छात्र-छात्राओं से ली गई फीस का विवरण न होने से इस पर गंभीर सवाल उठते हैं, और यह शिक्षा विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करता है।
प्राचार्य ने जानकारी छिपाई
विवाद की सबसे बड़ी वजह प्राचार्य द्वारा जांच समिति को आवश्यक दस्तावेज़ और वित्तीय जानकारी न मुहैया कराना है। जांच समिति के अनुसार, प्राचार्य ने छात्रों से ली गई फीस की रसीदें, खर्चों के व्हाउचर, स्टॉक पंजी और केशबुक जैसी महत्वपूर्ण दस्तावेजों को उपलब्ध नहीं कराया। इसके कारण, स्कूल की वास्तविक वित्तीय स्थिति का सही आकलन करना संभव नहीं हो सका।
इसके अलावा, जब समिति ने प्राचार्य से इन दस्तावेजों को मांगने का प्रयास किया, तो कई दस्तावेज़ गुम या गलत तरीके से प्रस्तुत किए गए, जो जांच में और भी असुविधाजनक साबित हुआ। प्राचार्य के इस रवैये से यह स्पष्ट होता है कि संस्थान की वित्तीय स्थिति में पारदर्शिता का घोर अभाव था।
दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं कराया
प्राचार्य द्वारा जरूरी दस्तावेजों को न मुहैया कराना न केवल जांच को जटिल बनाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि स्कूल ने जानबूझकर अपनी वित्तीय स्थिति को अस्पष्ट रखने की कोशिश की। जब तक वास्तविक दस्तावेज़ों की जांच नहीं की जाती, तब तक स्कूल के वित्तीय संचालन पर शक बना रहेगा।
एक साल में तीन ऑडिट रिपोर्ट पेश की
संस्था द्वारा समय-समय पर प्रस्तुत आंकड़ों में निरंतर बदलाव होता रहा है, जिसने जांच प्रक्रिया को और भी जटिल बना दिया। शुरुआत में, जब संस्था ने अपने आंकड़े प्रस्तुत किए थे, तो उनकी बचत ₹82,146 बताई गई थी। इसके बाद, प्राचार्य ने 2022 में एक नया आंकड़ा प्रस्तुत किया, जिसमें बचत राशि ₹11,74,346 बताई गई। फिर, ऑडिट रिपोर्ट में बचत राशि ₹43,93,618 बताई गई।
यह निरंतर बदलाव इस बात का संकेत देता है कि या तो विद्यालय के आर्थिक प्रबंधन में कोई स्पष्टता नहीं थी, या फिर यह जानबूझकर किया गया ताकि वास्तविक स्थिति को छिपाया जा सके। इन बदलावों ने जांच समिति को और भी संशय में डाल दिया है कि वास्तविक स्थिति क्या है।
उत्पीड़न का आरोप निराधार
इस विवाद के बीच, स्कूल के प्राचार्य ने यह आरोप भी लगाया था कि इस कार्यालय द्वारा उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। हालांकि, जांच समिति और कार्यालय ने इस आरोप को पूरी तरह से निराधार बताया है। कार्यालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि संस्था के खिलाफ कोई उत्पीड़न नहीं किया जा रहा है और सारी प्रक्रिया पारदर्शिता से की जा रही है।
यह आरोप शिक्षा विभाग की ओर से कोई विकृत मानसिकता नहीं, बल्कि केवल वित्तीय गड़बड़ियों के मामले में गंभीर जांच की दिशा में किया गया था।
शिकायत और जांच प्रक्रिया
यह मामला उस समय सामने आया था, जब तत्कालीन संयुक्त संचालक द्वारा संस्था के खिलाफ प्राप्त एक शिकायत के आधार पर जांच प्रारंभ की गई थी। शिकायत में विद्यालय के वित्तीय संचालन में अनियमितताओं का आरोप था, जिसके बाद इस मामले की जांच की गई। जांच के दौरान कई महत्वपूर्ण वित्तीय दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता और आंकड़ों में असंगतियां पाई गईं, जो इस मामले को और भी गंभीर बना देती हैं।
यह विवाद शिक्षा क्षेत्र में वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। संस्था द्वारा दी गई जानकारी और प्रस्तुत की गई रिपोर्ट्स में असंगति और बदलाव से यह साफ हो रहा है कि संस्था के वित्तीय प्रबंधन में गड़बड़ी हो सकती है। ऐसे में, संबंधित अधिकारियों को इस मामले की और गहन जांच करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्रों और उनके अभिभावकों के साथ कोई धोखाधड़ी नहीं हो रही है।
- संस्था की बचत राशि में असंगति: संस्था की बचत राशि में लाखों रुपये का अंतर, जो दस्तावेजों में बदलाव का कारण बना।
- ऑडिट रिपोर्ट में विसंगति: छात्रों की फीस का उल्लेख न होने से रिपोर्ट पर सवाल उठाए गए और यह संकेत मिलता है कि फीस को जानबूझकर छुपाया गया।
- प्राचार्य का सहयोग न करना: प्राचार्य द्वारा आवश्यक दस्तावेज़ों का न देना और गुम दस्तावेज़ों का अभाव, वित्तीय स्थिति के सही आकलन में रुकावट।