बस्तर: नक्सलियों के बीच रहकर जासूसी करने वाले एक युवक की कहानी सामने आई है। गुप्तचर बने युवक ने बोला-पुलिस ने कहा सरेंडर कराओ, नौकरी देंगे, मामले का भांडाफोड़ हुआ तो फ़ोर्स ने छोड़ा साथ, अब मौत का डर ‘मैंने नक्सलियों के लिए काम किया। फिर फोर्स के साथ जुड़ा। मुझसे वादा किया गया कि नक्सलियों का सरेंडर कराओ, पुलिस में नौकरी लगवा देंगे। मैंने कई नक्सलियों को पकड़वाया। अब नक्सली मारने के लिए ढूंढ रहे हैं। मैं उनके और पुलिस के बीच में पिस रहा हूं।’
यह कहना है, सुरेश उसेंडी (परिवर्तित नाम) का। वह और बस्तर-राजनांदगांव के नक्सल पीड़ित करीब 100 से ज्यादा लोग रायपुर में गृहमंत्री विजय शर्मा से मिलने पहुंचे थे। नक्सलियों ने किसी के पिता तो किसी के भाई को मार दिया था। सरकार से इन्हें अब तक कोई मदद नहीं मिली है। इन्हीं में एक जासूस था सुरेश उसेंडी, जिसे पुलिस वालों ने गोपनीय सैनिक बनाया था। अब नक्सलियों के हाथों मरने से पहले वह खुद को नौकरी करता देखना चाहता है। पढ़िए सुरेश की कहानी, उसी की जुबानी…
कोलकाता में होती थी नक्सली लीडर की मीटिंग
सुरेश उसेंडी ने बताया कि, वह जब 8वीं में पढ़ता था, तभी गांव में नक्सली आए और उसे जबरदस्ती साथ ले गए। बीच-बीच में गांव में छोड़ जाते थे। उसने किसी तरह 12वीं तक पढ़ाई की। फिर नक्सलियों ने बड़े नक्सली लीडर्स को कोलकाता ले जाने का काम दिया। प्रभाकर, जयमती, विजय रेड्डी, बोपन्ना ये वो बड़े नक्सल लीडर हैं, जिन्हें बस्तर से अपने साथ कोलकाता लेकर जाता था। वहां के इटारसी भवन में मीटिंग होती थी। छत्तीसगढ़ में आतंक मचाने की सोच वहीं से आती है। नक्सलियों को कंपाउंडर की तरह इलाज करने का काम देते थे। उसने 2001 से 2008 तक नक्सलियों के लिए काम किया।
माओवादियों को हथियार बंगाल और आंध्र से आते हैं
सुरेश ने बताया कि बंगाल और आंध्र प्रदेश से हथियारों की डील होती थी। ट्रक या ट्रैक्टर में गिट्टी भरकर उसके नीचे हथियार दबाकर बस्तर के माड़ एरिया में ले जाए जाते थे। हथियारों के लिए फंड बस्तर में पुल-पुलिया बनाने वाले ठेकेदारों से की गई वसूली से आते थे। आतंकी संगठन से भी हथियारों का सपोर्ट मिलता था। 2008 में अफसरों ने उसेंडी से कहा- तुम नक्सलियों का सरेंडर करवाओ, उनके ठिकाने हमें बताओ तुम्हें पुलिस की नौकरी देंगे। इसके बाद सुरेश ने 4 नक्सलियों का सरेंडर करवाया। पुलिस को नक्सलियों के अड्डों के बारे में बताया। वहां फोर्स ने नक्सल कैंप नष्ट कर 3 नक्सलियों को पकड़ा और हथियार बरामद किए।
जासूस की सरकार से गुहार की चिट्ठी,काका आप भाग जाओ वरना..
उसेंडी ने बताया कि, वह अपने घर में नक्सलियों को सुला देता और फिर पहाड़ी पर जाकर पुलिस को फोन से इनपुट दिया करता था। नक्सली इस गद्दारी की सजा में काट देते हैं। उसके दो दोस्तों को धारदार हथियार से काटकर मार दिया। हम भी एक्सपोज हो चुके थे। सुरेश ने बताया कि, जिस रात उसके दोस्त की हत्या हुई, उससे पहले कहा था कि काका आप भाग जाओ, मैं भाग गया। दोस्तों को नक्सलियों ने मार दिया। मेरे घर वालों को जंगल में ले जाकर 15 दिनों तक मारते-पीटते रहे। फोर्स वालों ने मुझ से संपर्क तोड़ दिया और वो वादा भी। मैं अपने गांव नहीं जा सकता।
उसेंडी की तरह बस्तर में करीब 200 गोपनीय सैनिक अलग-अलग जिलों में काम करते हैं। नक्सलियों का इनपुट पैरा-मिलिट्री फोर्स और पुलिस को देते हैं। अक्सर ऐसे लोगों के एक्सपोज हो जाने पर नक्सली इन्हें पुलिस का मुखबिर बताकर गांव वालों के सामने मार डालते हैं। पुलिस खुलकर मदद नहीं कर पाती। उसेंडी की तरह ही बिना किसी वर्दी या हथियार के जान का जोखिम लेकर नक्सलियों के खिलाफ जंग लड़ रहे इन गोपनीय सैनिकों को एक बेहतर पुनर्वास नीति की उम्मीद है। ताकि यह नक्सल खौफ से अलग होकर एक अच्छी जिंदगी बिता सकें।
गृहमंत्री ने आश्वस्त किया है कि नई नीति से उसेंड़ी की तरह पीड़ित लोगों को मदद मिलेगी
गृह मंत्री ने दिया आश्वासन गृह मंत्री विजय शर्मा रायपुर में नहीं थे। उन्होंने फोन पर नक्सल पीड़ितों से बात की। गृहमंत्री शर्मा ने उनसे कहा कि, सरकार एक ऐसी पुनर्वास नीति लेकर आ रही है, जिसमें हिंसा से पीड़ित वर्ग को भी मकान, रोजगार और आर्थिक सहायता दिए जाने का प्रावधान होगा। एक महीने का इंतजार करने को गृहमंत्री ने कहा है।