कांग्रेस नेता त्रिलोक श्रीवास की न्यायालय ने किया अपील खारिज, 1500 रुपये का अर्थदंड को रखा बरकरार…
बिलासपुर : द्वितीय अपर सत्र न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के दौरान पूर्व में दिए गए विचारण न्यायालय के फैसले को यथावत रखते हुए दोषियों पर लगाए गए अर्थदंड को बनाए रखा है। इस फैसले में न्यायालय ने तीन आरोपियों पर 1500 रुपये का अर्थ दंड लगाया है, जिसे आरोपियों के द्वारा अपील किया था जिसमें न्यायालय ने आदेश में बरकरार रखा है ।
मामला 16 जुलाई 2014 का है, जब बड़ी कोनी में जयश्री शुक्ला अपने बेटे अमृताश शुक्ला के नाम पर गैस गोदाम का निर्माण करवा रही थी । इसी दौरान तत्कालीन सरपंच स्मृति श्रीवास, उनके पति त्रिलोक श्रीवास और आनंद श्रीवास समेत लगभग 80 से 100 ग्रामीणों का भीड़ वहां पहुंचा। इन पर आरोप था कि तीनों आरोपितों ने अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) न होने का तर्क देते हुए जयश्री शुक्ला और उनके बेटे के साथ गाली-गलौज करते हुए मारपीट किया। इस घटना के बाद मामला में अपराध दर्ज कर न्यायालय में चलान पेश किया गया ।
जिस पर सुनवाई करते हुए विचारण न्यायालय ने गवाहों और अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों के आधार पर दोषियों को दोषी ठहराया और 1500 रुपये का अर्थदंड का आदेश दिया था। न्यायालय ने यह पाया कि तीनों आरोपियों ने एनओसी न होने का बहाना बनाकर प्रार्थियों के साथ हिंसक व्यवहार किया और कानून का उल्लंघन भी किया।
दोषियों ने इस फैसले के खिलाफ सेशन न्यायालय में अपील किया था जिसमें न्यायालय में सुनवाई के दौरान पंचायत अधिनियम का हवाला देते हुए तर्क दिया था कि तत्कालीन सरपंच स्मृति श्रीवास के रूप में उन्होंने अपने पति त्रिलोक श्रीवास के साथ मिलकर अवैध निर्माण को रोकने का प्रयास किया था। उनका कहना था कि एनओसी न होने के कारण उन्होंने पंचायत के नियमों का पालन किया, न कि किसी प्रकार की अवैध गतिविधि में शामिल थे।
हालांकि, द्वितीय अपर सत्र न्यायालय ने अपीलकर्ताओं के
इस तर्क को खारिज कर दिया। अदालत ने पाया कि
दोषियों द्वारा प्रस्तुत तर्क न केवल अपर्याप्त थे, बल्कि
गवाहों के बयानों और अन्य साक्ष्यों से यह स्पष्ट था कि
आरोपियों ने प्रार्थियों के साथ मारपीट की थी। न्यायालय
ने कहा कि पंचायत अधिनियम के तहत की गई कार्यवाही
का तर्क अपीलकर्ताओं द्वारा गलत तरीके से प्रस्तुत किया
गया, और इसे कानून की प्रक्रिया के उल्लंघन के रूप में
देखा गया।
अंततः, न्यायालय ने अपील को खारिज करते हुए विचारण न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय को सही ठहराया और दोषियों पर लगाए गए अर्थदंड को बरकरार रखा। अब दोषियों को 1500 रुपये का अर्थदंड न्यायालय में जमा करना होगा।
इस मामले से यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय ने विधिसम्मत कार्यवाही को प्राथमिकता दी है और कानून के दुरुपयोग की अनुमति नहीं दी जाएगी। दोषियों द्वारा पंचायत अधिनियम के दायरे में तर्क प्रस्तुत करने के बावजूद, न्यायालय ने सत्य और साक्ष्यों के आधार पर फैसला सुनाया। अर्थ दंड भी एक प्रकार का सजा की श्रेणी में आता है।