सिटी कोतवाली रायगढ़ के फर्जी मामले में गिरफ्तार आदिवासी मकसीरो की पिटीशन पर गृह सचिव और टी.आई. सनिप रात्रे को हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस
आदिवासी मकसीरो को जमानत पर छोड़ने का आदेश जारी
सीनियर एडवोकेट अशोक कुमार मिश्रा ने हाईकोर्ट के आदेश को ऐतिहासिक फैसला करार दिया
पुलिस अधीक्षक रायगढ़ को हाईकोर्ट ने अभियुक्त को FIR की प्रति उपलब्ध कराने का आदेश दिया
सीनियर एडवोकेट अशोक कुमार मिश्रा ने निचली अदालतों द्वारा कानून की अनदेखी को दुर्भाग्यपूर्ण होना बताया
रायगढ़ ::एक सेठ की वफादारी में नियम कानून की किताबों को बंद कर गरीब आदिवासी के खिलाफ फर्जी अपराध दर्ज करते हुए उसे जेल में डाल दिया गया । रायगढ़ न्यायालय में जमानत की अर्जी लगाई गई लेकिन यहां भी इस गरीब आदिवासी को न्याय नहीं मिल सका । जब हाईकोर्ट में न्याय का दरवाजा खटखटाया गया तो रायगढ़ की पुलिस के कारनामे देख हाई कोर्ट दंग रह गया । हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ के पुलिस के मुखिया डीजीपी और टीआई दोनों को तलब किया है । साथ ही हाईकोर्ट में इस गरीब आदिवासी के लिए कोई जमानत अर्जी नहीं लगाई गई है बल्कि फर्जी f.i.r. को निरस्त करने की मांग की गई है लेकिन हाईकोर्ट ने परिस्थितियों और सेठ के इशारे पर टीआई द्वारा किए गए फर्जी f.i.r. को देखते हुए स्वयं ही गरीब आदिवासी को जमानत पर रिहा करने का आदेश भी पारित कर दिया। हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला था। साथ ही जिस पुलिस से हम न्याय की उम्मीद रखते हैं वह पुलिस धनवानो के इशारे पर किस प्रकार काम करती है यह नजारा भी इस केस और इस सरकार में देखने को भरपूर मिल रहा है।
रायगढ़ के इस बहुचर्चित प्रकरण राजस्व न्यायालय में मामला जीतने वाले गरीब आदिवासी मकसीरो को पूंजीपति विरोधी पक्षकार अजीत मेहता की रिपोर्ट पर सिटी कोतवाली रायगढ़ द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420, 467, 468, 471, 120बी 34 के तहत गिरफ्तार कर जेल दाखिल कर दिया था, इसे चुनौती देते हुए अशोक कुमार-आशीष कुमार मिश्रा चेम्बर द्वारा आरोपी मकसीरो की ओर से छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में क्रीमनल रिट पिटिशन नम्बर 21/2023 दाखिल कराकर समूची रिमाण्ड कार्यवाही को अवैध होने का दावा करते हुए fir निरस्त कराने की मांग की गई है।
12 जनवरी को उक्त रिट याचिका की सुनवाई हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में जस्टिस संजय के. अग्रवाल एवं जस्टिस राकेश मोहन पाण्डेय द्वारा की गई एवं सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ के गृह सचिव और सिटी कोतवाली के टी.आई. को नोटिस जारी करने का आदेश पारित किया एवं इस प्रकरण को अपवाद मानते हुए जेल में बंद आदिवासी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया । गरीब आदिवासी की ओर से हाईकोर्ट के संज्ञान में यह बात भी लाई गई कि गरीब आदिवासी को न्याय से वंचित करने के लिये ही इस प्रकरण की FIR को सेंसिटिव बताकर वेबसाइट पर अपलोड़ नहीं किया गया, ताकि FIR को चुनौती ही न दी जा सके । यहां तक कि सूचना अधिकार के तहत भी FIR की प्रति आरोपी के वकील को पुलिस ने उपलब्ध नहीं कराया है । हाईकोर्ट के संज्ञान में यह बात लाए जाने पर हाईकोर्ट ने रायगढ़ के पुलिस अधीक्षक को आदेश दिया है कि वे आरोपी को FIR की प्रति उपलब्ध कराएं । हाईकोर्ट ने आरोपी को FIR की प्रति संलग्न करने से छूट देेने का भी आदेश पारित किया है क्योंकि मांगने के बाद भी उसे पुलिस ने FIR की कापी नहीं दिया है।
इस प्रकरण में लम्बी बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में लेख किया है कि यदि आरोपी पर न्यायालय में झूठा शपथपत्र देने का आरोप है, तो रिपोर्टकर्ता को धारा 193 भा.दं.वि. के तहत उपचार उपलब्ध था ।
हाईकोर्ट ने क्रीमनल रिटपिटीशन में आरोपी को जमानत पर छोड़ने का आदेश दिये जाने को अपवाद करार देते हुए आरोपी मकसीरो को 25,000/-रू. की जमानत पर मुक्त करने का आदेश पारित कर दिया एवं छत्तीसगढ़ शासन के गृह सचिव तथा कोतवाली के टी.आई. को 10 दिन के भीतर शपथपत्र के साथ अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है । हाईकोर्ट ने इन दोनों को हाथो हाथ नोटिस तामील कराने की भी अनुमति दे दिया है ।
सीनियर एडवोकेट अशोक कुमार-आशीष कुमार मिश्रा ने बताया कि प्रदेेश का यह पहला मामला है, जिसमें हाईकोर्ट ने क्रीमनल रिट में जमानत पर छोड़ने का आदेेश दिया हो । हाईकोर्ट के इस आदेेश की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुए मिश्रा चेम्बर के सीनियर एडवोकेट अशोक कुमार-आशीष कुमार मिश्रा ने इसे न्याय क्षेत्र में मील का पत्थर होना बताया।
सीनियर वकील अशोक कुमार मिश्रा ने कहा कि इस मामले का सबसे दुर्भाग्य जनक पहलू यह है कि लोअर कोर्ट से लेकर सेशन कोर्ट तक ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 एवं 340 तथा भारतीय दण्ड विधान की धारा 193 को पढ़ने के बाद भी इसके अर्थ को नहीं समझा, जिसके कारण एक गरीब आदमी अवैध रूप से जेल में दाखिल हो गया एवं उसे न्याय दिलाने के लिये हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा । निचली अदालतों की ऐसी ही अनदेखी से पुलिस की मनमानी उत्साहवर्धन होता है एवं अवैध गिरफ्तारी बेरोकटोक जारी रहती है , जिसके प्रति निचली अदालतों को हाईकोर्ट से दिशा निर्देश दिये जाने की जरूरत है।