विधानसभा सत्र में प्रशनके दौरान जनता कांग्रेस जोगी के विधायक डॉ रेणु जोगी के प्रश्नों पर घिरी छत्तीसगढ़ सरकार…….नगरनार इस्पात संयंत्र के निजीकरण और हसदेव अरण्य मामले में छत्तीसगढ़ सरकार की दोगली नीति हुआ उजागर : डॉ रेणु जोगी
रायपुर : विधानसभा सत्र के दौरान जनता कांग्रेस जोगी के विधायिका डॉ रेणु जोगी के प्रश्नों पर घिरी छत्तीसगढ़ सरकार।
आज विधानसभा सत्र के दौरान जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) की विधायिका डॉ रेणु जोगी के प्रश्न के जवाब में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने यह स्वीकारा कि नगरनार इस्पात संयंत्र स्थित छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी शासकीय भूमि जिसका रकबा 146.05 हेक्टेयर है और जो महाप्रबंधक, जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र जगदलपुर के नाम पर थी और जिस पर नगरनार इस्पात संयंत्र स्थापित है उसे राज्य सरकार के सीएसआईडीसी द्वारा एनएमडीसी को 06 दिसंबर और 21 दिसंबर 2021 को डिमांड नोट प्रेषित कर कुल 33,51,70,691/- करोड़ रुपये में बेच दिया। अब चूँकि संयंत्र की जमीन पर मालिकाना हक एनएमडीसी का हो गया है इसलिये केंद्र सरकार अब आसानी से नगरनार संयंत्र का निजीकरण कर सकेगी। डॉ रेणु जोगी ने कहा कि संयंत्र की भूमि शासकीय यानी राज्य सरकार ने नाम पर होना ही संयंत्र के निजीकरण में सबसे बड़ा रोड़ा था और राज्य सरकार ने भूमि बेचकर उस रोड़े को ही हटा दिया यानी निजीकरण का रास्ता खोल दिया। राज्य सरकार का यह कदम केवल बस्तरवासी ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़वासियों के साथ छलावा है और विश्वासघात है। राज्य सरकार द्वारा नगरनार इस्पात संयंत्र के निजीकरण के विरुद्ध रक्षक बनने के बजाय, निजीकरण में सहायक बनने से जनता में भारी आक्रोश है और यह मामला एक व्यापक आंदोलन का रूप लेगा ।
वहीं हसदेव मामले में डॉ रेणु जोगी द्वारा पूछे गए प्रश्न के जवाब में वन मंत्री ने आज जो जवाब दिया है उससे भी साफ़ है कि राज्य सरकार ने मेसर्स राजस्थान राज्य विद्युत् निगम लिमिटेड को परसा ईस्ट एवं केटे बासेन कॉल ब्लॉक का 2388.525 हेक्टेयर खनिपट्टा 30 वर्ष के लिए दिया। भारत सरकार का नाम लेकर और कोल् बेअरिंग एक्ट का हवाला देकर राज्य सरकार बच नहीं सकती। खनन के लिए 3,22,028 पेड़ों का काटा जाना, केवल सरगुजा क्षेत्र नहीं बल्कि हसदेव नदी से 90% सिंचित जांजगीर-चांपा जिले को भी खतरे में डालना है और पूरे प्रदेश के पर्यावरण सिस्टम को बिगाड़ना है । हसदेव अरण्य का इलाका संविधान की पांचवीं अनुसूची में, 1966 के पेसा कानून और 2006 के वन अधिकार कानून के अंतर्गत आता है। राज्य सरकार के अंतर्गत इतने कानून और संवैधानिक अधिकार होकर भी राज्य सरकार हसदेव बचाने की जगह, उसे उजाड़ने में सहायक बनी। डॉ रेणु जोगी ने कहा कि राज्य सरकार को खनन की सारी अनुमतियों को रद्द करना चाहिए और हसदेव बचाकर अपना राजधर्म निभाना चाहिए ।