रायपुर। प्रदेश में चल रहे चर्चित शराब घोटाला कांड में एक नया मोड़ सामने आया है, जिसमें रायपुर के दाऊ कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी (डीकेएस) अस्पताल के एक डॉक्टर की नौकरी चली गई है। अस्पताल अधीक्षक ने डॉक्टर को बर्खास्त करने का आदेश जारी किया है, जो कि अनवर ढेबर से जुड़े मामले में कथित रूप से लापरवाही बरतने के कारण हुआ है। बर्खास्तगी का यह आदेश अब सार्वजनिक हुआ है, हालांकि डॉक्टर ने पहले ही अस्पताल प्रबंधन को अपनी सफाई देते हुए माफी भी मांगी थी, परंतु अस्पताल प्रबंधन ने डॉक्टर की गलती को गंभीर मानते हुए यह सख्त कदम उठाया है।
अनवर ढेबर, जो कि प्रदेश के चर्चित शराब घोटाले के मुख्य आरोपियों में से एक हैं, को 8 जून 2024 को इलाज के लिए रायपुर सेंट्रल जेल से डीकेएस अस्पताल लाया गया था। उनके इलाज के लिए इन्डोस्कोपी की सलाह दी गई थी, लेकिन डॉक्टर प्रवेश शुक्ला, जो कि डीकेएस में गोस्ट्रो सर्जन और मेडिकल कॉलेज के सहायक प्राध्यापक थे, ने ओपीडी पर्ची में लिखा कि ‘डीकेएस में इन्डोस्कोपी नहीं होता’।
अस्पताल अधीक्षक ने इस मामले को गंभीर लापरवाही मानते हुए एक जुलाई 2024 को डॉक्टर शुक्ला को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा। अपने स्पष्टीकरण में, डॉ. शुक्ला ने बताया कि 8 जून 2024 को डीकेएस में पांच इन्डोस्कोपी की गईं, लेकिन वे सभी यूको इन्डोस्कोपी और पीडियाट्रिक इन्डोस्कोपी के थे, जो वयस्कों की कोलोनोस्कोपी से अलग होते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि डीकेएस अस्पताल में सर्जिकल गैस्ट्रोइंटेरोलॉजी डिपार्टमेंट का इन्डोस्कोपी उपकरण काफी समय से खराब चल रहा है, जिसके चलते वहां पर एडल्ट इन्डोस्कोपी नहीं की जा रही है।
डॉक्टर का कहना था कि अनवर ढेबर को सीटी स्कैन की सलाह दी गई थी, लेकिन उनकी क्रिएटिनिन लेवल ज्यादा होने के कारण सीटी स्कैन नहीं किया जा सका। इसलिए मरीज को किसी अन्य सरकारी अस्पताल या एम्स रायपुर में कोलोनोस्कोपी कराने की सलाह दी गई थी।
अस्पताल प्रबंधन ने डॉ. शुक्ला के इस स्पष्टीकरण को अस्वीकार करते हुए इसे अनुशासनहीनता और छत्तीसगढ़ सिविल सेवा आचरण नियम 1965 का उल्लंघन मानते हुए उनकी बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया। इस आदेश में कहा गया कि विचाराधीन बंदी (अनवर ढेबर) को अपराध से बचाने के लिए जानबूझकर ओपीडी पर्ची में गलत जानकारी दी गई, जो गंभीर अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है।
बर्खास्तगी के बाद, अस्पताल प्रशासन ने इस मामले की जांच के लिए गोलबाजार थाने में एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश भी जारी किया है।
यह मामला केवल एक डॉक्टर की नौकरी जाने का नहीं है, बल्कि प्रदेश में हो रहे बड़े भ्रष्टाचार और सरकारी संस्थानों में व्याप्त अनियमितताओं को भी उजागर करता है। इस घटना ने एक बार फिर से प्रशासनिक पारदर्शिता और ईमानदारी पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
डॉक्टर शुक्ला का कहना है कि उन्होंने किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं की और वे पूरी तरह से निर्दोष हैं। उन्होंने कहा कि वे इस मामले में न्याय पाने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे। इस बीच, अस्पताल प्रशासन ने उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्णय लिया है और यह मामला प्रदेश में एक बड़े विवाद का रूप ले चुका है।
राज्य सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराने का आश्वासन दिया है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि किसी भी प्रकार की लापरवाही और भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।